Book Title: Tandul Vaicharikam
Author(s): Vimal Gani
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

View full book text
Previous | Next

Page 75
________________ भवाणं अहोगामिणीणं पायतलमुवगयाणं जाणं सि निरुवघाएणं जंघाबलं भवइ, ताणं चेव से उवधाएणं सीसवेयणा अद्धसीसवेयणा मत्थयसूले अच्छीणि अंधिजंति । ( सूत्रं २४ ) आउसो ! इमंमि सरीरए सट्ठिसिरासयं नाभिप्पभवाणं तिरियगामिणीणं हत्थतलमुवगयाणं जाणं सि निरुवघाएणं बाहुबलं, हवइ, ताणं चेव से उवग्घाएणं पासवेयणा पुट्टिवेयणा कुच्छिवेयणा कुच्छिसूले हवइ ॥ आउसो ! इमस्स जंतुस्स सहिसिरासयं नाभिप्पभवाणां अहोगामिणीणं गुदप्पविट्ठाणं जाणं सि निरुवघाएणं| मुत्तपुरीसवाउकम्मं पवत्तइ, ताणं चेव उवघाएणं मुत्तपुरीसवाउनिरोहेणं अरिसा खुम्भंतिपंडु रोगो भवइ आउसो ! इमस्स जंतुस्स पणवीसं सिराओ पित्तधारिणीओ पणवीसं सिराओ सिंभधारिणीओ| दस सिराओ सुक्कधारिणीओ सत्त सिरासयाई पुरिसस्स तीसूणाई इत्थियाए वीसूणाई पंडगस्स आउसो! इमस्स जतुस्स रुहिरस्स आढयं वसाए अद्धाढयं मत्थुलुंगस्स पत्थो मुत्तस्स आढयं पुरिसस्स पत्थो है पित्तस्स कुडवो सिंभस्स कुडवो सुक्कस्स अद्धकुडवो, जं जाहे दुटुं भवइ तं ताहे अइप्प माणं भवइ, पञ्चकोढे पुरिसे छकोहा इत्थिया नवसोए पुरिसे इक्कारससोया इत्थिया, पञ्च पेसीसयाई पुरिसस्स तीसूणाई इत्थियाए वीसूणाई पंडगस्स (सूत्रं १६) 'आउसो जं.' इत्याद्यालापकरूपं सूत्रं, हे आयुष्मन् ! यदपिच इदं शरीरं-वपुः इष्टं इच्छाविषयत्वात् कान्तं कमनीयत्वात् प्रियं प्रेमनिबन्धनत्वात् मनसा ज्ञायते-उपादीयत इति मनोज्ञं मनसा अम्यते-गम्यते इति मनोऽमं| Jain Education anal For Private Personal Use Only J w .jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160