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VI]
( अपनी बात वह सब मेरी बुद्धि का ही दोष है और जो कुछ भी यथार्थ है वह सब पूज्यश्री स्वामीजी की ही देन है। उनकी उपस्थिति मे भी एवं स्वर्गवास के पश्चात भी जैसे-जैसे मैं जिनवाणी का अध्ययन करता रहा, उनके उपदेश का एक-एक शब्द जिनवाणी से मिलता था उससे भी उनके प्रति मेरी श्रद्धा बहुत दृढ़ हुई। वास्तविक बात तो यह है कि जिनवाणी के अध्ययन करने के लिये दृष्टि भी पूज्य गुरुदेवश्री द्वारा ही प्राप्त हुई है, अन्यथा मोक्षमार्ग के लिये हम बिल्कुल अंधे थे। अतः इस पामर प्राणी पर तो पूज्य श्रीस्वामीजी का तीर्थकर तुल्य उपकार है जिसको यह आत्मा इस भव में तो क्या, भविष्य के भवों में भी नहीं भूल सकेगा।"
इसप्रकार जो कुछ भी गुरु उपदेश से प्राप्त हुआ और अपनी स्वयं की बुद्धिरूपी कसौटी से परखकर स्वानुभव द्वारा निर्णय में प्राप्त हुआ उसी का संक्षिप्त सार अपनी सीधी सादी भाषा में प्रस्तुत करने का यह अन्तिम प्रयास है। मेरी उम्र 78 वर्ष की है और इस कृति का जो भाग शेष है वह भी मेरे इस जीवन काल में सम्पूर्ण तैयार हो, प्रकाशित होकर आत्मार्थी बंधुओं को मोक्षमार्ग प्राप्त करने का मार्ग सुगमता से प्राप्त करावे - यही एक भावना है।
इसप्रकार प्रस्तुत प्रकाशक आत्मार्थी जीवों को यथार्थ मार्ग प्राप्त करने में कारण बनें इस भावना के साथ तथा मेरा उपयोग जीवन के अंतिम क्षण तक भी जिनवाणी की शरण में बना रहे एवं उपरोक्त यथार्थ मार्ग मेरे मे सदा जयवंत रहे इसी भावना के साथ विराम लेता हूँ।
- नेमीचंद पाटनी
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