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सुखी होने का उपाय)
सिद्ध भगवान को प्रगट हुए आनन्द का नमूना रूप स्वाद चखकर, यथार्थ श्रद्धावान होकर, मोक्षमार्गी अर्थात् सम्यग्दृष्टि बन जाता है।
इसप्रकार अव्यक्त त्रिकाली भाव को अपने अनुभव में व्यक्त करके इन अस्थाई, पलटते हुये भावों के प्रति प्रेम- अपनापन, टूट जाने से और सहज ही उपेक्षा वर्तने के कारण वे क्रमशः निर्बल पड़ते जाते हैं। अर्थात् विकार रहित होते-होते, पूर्ण निर्विकारी होकर, यह पर्याय भी त्रिकाली भाव के साथ ही सम्मिलन प्राप्त कर स्थाई शांति प्राप्त कर लेती है। अर्थात् सिद्धदशा प्राप्त कर लेती है। इस ही मार्ग का नाम साक्षात् मोक्षमार्ग है। यह मार्ग ही आत्मार्थी जीवों को अनेक-अनेक प्रकार के अपने-अपने चिंतन, मनन के माध्यम से प्राप्त होता है। इस ही कारण सारी जिनवाणी में इस ही मार्ग को प्राप्त करने के उपायों का अनेक-अनेक अपेक्षाओं से अनेक-अनेक प्रकार से कथन किया है। इससे प्रत्येक आत्मार्थी किसी भी प्रकार यह मार्ग प्राप्त कर पूर्ण सुखी हो जावे, यही श्री गुरु का करूणाभरा महान-महान उपकार है।
तत्वार्थ श्रद्धान सम्यग्दर्शन
उपरोक्त मोक्षमार्ग का प्रारंभ "यथार्थ श्रद्धा अर्थात सम्यकदर्शन के बिना नहीं होता । इसीलिये भगवत् कुंदाकुंदाचार्य देव ने अष्टपाहुड में कहा है कि "दंसणमूलो धम्मो" आदि आदि । यही कारण है कि श्रद्धान अर्थात समझ को सही करना ही सबसे पहले आवश्यक कर्तव्य है और इसीलिये सर्वप्रथम अपने आत्मा के यथार्थ स्वरूप को समझकर उस त्रिकाली भाव में अपनापन स्थापन करना ही
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