Book Title: Sukhi Hone ka Upay Part 2
Author(s): Nemichand Patni
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 117
________________ .99) (सुखी होने का उपाय स्थितियाँ हैं। आगमशैली का प्रयोजन छह द्रव्यों के स्वरूप को समझाकर एक स्व आत्मा में स्वपना स्थापन कराकर, अन्य समस्त द्रव्यों को पर जान उनके प्रति परज्ञेयपने की श्रद्धा जाग्रत कर उपेक्षाबुद्धि प्रगट करना है। अध्यात्मशैली का प्रयोजन अपनी स्व आत्मा में ही उत्पन्न विकारी-निर्विकारी पर्यायों में अनित्यता की मुख्यता से पर पने की मान्यता पूर्वक हेयपना स्थापन कर उपेक्षाबुद्धि प्रगट करते हुए अपने ही त्रिकाली ध्रुव ज्ञायकभाव में स्वपना स्थापन कराना है। इस दृष्टिकोण को मुख्य रखकर नयों के प्रकरण को समझना चाहिए नयज्ञान से लाभ विश्व की व्यवस्था ही ऐसी है कि उसमें द्रव्य छह जाति के मिलकर अनंतानंत है तथा आत्मा में भी त्रिकाली ध्रुवस्वभाव भी है तथा अनित्य पर्यायभाव भी है। सब एक साथ ही हर एक समय विद्यमान है। साथ ही ज्ञान में भी हर समय सब ही आने योग्य हैं। जब ज्ञान की ओर देखते है तो क्षायिकज्ञान में तो यह सामर्थ्य है कि वह सबको एक साथ ही जान लेता है, अतः उस ज्ञान में विभागीकरण करने को कुछ रहता ही नहीं है। ऐसे ज्ञान का नाम ही . प्रमाणज्ञान है। ऐसा ज्ञान हमको प्राप्त नहीं है। हम छद्मस्थों का क्षयोपशम ज्ञान तो सम्पूर्ण विश्व अथवा अपनी ही संपूर्ण आत्मा को भी एक समय में • अपने ज्ञान का विषय नहीं बना सकता। ___ अतः जब वह ज्ञान एक वस्तु को जानने के सन्मुख होता है, तो अन्य वस्तुओं का अस्तित्त्व होते हुए भी ज्ञान के बाहर रह जाती है। इसीप्रकार अपनी आत्मा के ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 115 116 117 118 119 120 121 122