Book Title: Sukhi Hone ka Upay Part 2
Author(s): Nemichand Patni
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 121
________________ (सुखी होने का उपाय इसप्रकार आगम-अध्यात्म के नयों में मूलभूत अंतर है। आगम का उद्देश्य मात्र ज्ञान कराना है तथा अध्यात्म का उद्देश्य प्रयोजन सिद्ध करना है। दोनों शैलियों का यह मूलभूत अंतर है। मुख्य गौण व्यवस्था दोनों प्रकार के नयों में अनिवार्य है। प्रमाण में यह व्यवस्था नहीं है। 103) उपरोक्त दृष्टिकोण को मुख्य रखकर नयज्ञान के द्वारा जिनागम का रहस्य समझना चाहिये। यहाँ हमारा उद्देश्य नयों के भेद-प्रभेदों के समझाने का नहीं है, यहाँ तो मात्र नयों का दृष्टिकोण समझाने का उद्देश्य है। इस संबंध की विस्तृत जानकारी के लिये डॉ. हुकमचंदजी भारिल्ल की "परमभावप्रकाशक नयचक्र" नामक पुस्तक का अभ्यास करना चहिये। लगभग ४०० पृष्ठों की उक्त पुस्तक में इस विषय पर बहुत सुन्दर व विस्तृत विवेचन है। कोई कहे कि हमारी बुद्धि नयों को समझने में कार्य नहीं करती तो क्या हमको मोक्षमार्ग प्राप्त नहीं होगा ? समाधान- ऐसा नहीं है। पर्याय का यथार्थ प्रकार से दोनों के ज्ञान के बिना तो मोक्षमार्ग का मूल तो द्रव्य हेय - उपादेय का ज्ञान है। इन मोक्षमार्ग का प्रारम्भ भी कैसे होगा ? इनको जानने के समय साधक को हेय - उपादेय व मुख्य- गौण करना नहीं पड़ता, हो इतना ज्ञान तो अवश्य होता ही है। विषय नहीं है, अतः इसके नाम से कोशिश, मोक्षमार्ग से दूर हटने के बात अवश्य है कि इस विषय की विस्तारपूर्वक जानकारी न भी हो तो भी आवश्यक जानकारी के बिना आत्मोपलब्धि का मार्ग समझना असंभव है। आत्मोपलब्धि के ही जाता है। अतः नयज्ञान बहुत जटिल डरकर दूर भागने की समान होगी। इतनी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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