Book Title: Sukhi Hone ka Upay Part 2
Author(s): Nemichand Patni
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 110
________________ सुखी होने का उपाय) (92 "मोक्षमार्ग दो नहीं है, मोक्षमार्ग का निरूपण दो प्रकार का है। जहाँ सच्चे मोक्षमार्ग को मोक्षमार्ग निरूपित किया जाय सो निश्चय मोक्षमार्ग है, और जहाँ जो मोक्षमार्ग तो है नहीं, परन्तु मोक्षमार्ग का निमित्त है व सहचारी है, उसे उपचार से मोक्षमार्ग कहा जाय सो व्यवहार मोक्षमार्ग है। क्योंकि निश्चय व्यवहार का सर्वत्र ऐसा ही लक्षण है। सच्चा निरूपण सो निश्चय, उपचार निरूपण सो व्यवहार।" उपचार का लक्षण आलापपद्धति सूत्र २१२ में कहा है कि"मुख्याभावे सति प्रयोजने निमित्तोपचारः प्रवर्तते" अर्थः- मुख्य के अभाव में प्रयोजन तथा निमित्त के लिये उपचार का प्रवर्तन होता है। उपरोक्त आगम वाक्यों के आधार पर यह तो स्पष्ट हो गया कि व्यवहार सम्यग्दर्शन सच्चा सम्यग्दर्शन तो नहीं है, लेकिन उपचार मात्र से ही सम्यग्दर्शन कहा जाता है। अतः इसकी अनिवार्यता भी उपचार से ही है। अब हमको समझना यह है कि उपरोक्त कहा गया व्यवहार मोक्षमार्ग, सम्यग्दर्शन में निमित्त कैसा है ? सहचारी कैसा है ? उपचार क्या है ? एवं प्रयोजन क्या सिद्ध होता है ? निश्चय के साथ व्यवहार मोक्षमार्ग का निमित्त, सहचारी एवं उपचारपना कैसे? सम्यक्त्वसन्मुख जीव को सच्चे देव-शास्त्र-गुरु के प्रति श्रद्धा एवं भक्तिभाव सहज ही प्रगट कैसे हो जाता है। इस विषय को समझ लेने से उस श्रद्धाभाव का सम्यग्दर्शन के साथ निमित्तपना एवं सहचारीपना कैसे है ? आदि सभी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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