Book Title: Sukhi Hone ka Upay Part 2
Author(s): Nemichand Patni
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 85
________________ 67) (सुखी होने का उपाय मनन चलता है तत्पश्चात् उस विषय का निर्णय पक्का होकर अनुमानपूर्वक ज्ञान में स्थान बना लेता है अर्थात् विश्वास में आ जाता है। उसके बाद ही उस विषय की श्रद्धा पक्की हो पाती है, उसका ज्ञान भी उस विषय को श्रद्धा के अनुसार ही देखता व जानता है। उसीप्रकार सर्वप्रथम सर्वप्रथम इन क्षण-क्षण में जन्ममरण (उत्पाद, व्यय) करनेवाले भावों के साथ अपनेपन का संबंध मानने के कारण उत्पन्न होनेवाली अशांति (दुःख) को दूर करने की अंदर में जिज्ञासा जाग्रत होती है उस त्रिकाल एकरूप स्थाई रहनेवाले भाव को खोजने की अंदर में तीव्र आवश्यकता का अनुभव करता है और यह विश्वास जाग्रत हो जाता है कि त्रिकाल एकरूप बने रहनेवाले भाव अर्थात् द्रव्यस्वभाव के साथ अपनेपन का संबंध जोडने से ही मेरे को शांति प्राप्त हो सकेगी। इन क्षण-क्षण में पलटते भावों के साथ अपनेपन का प्रेम तो मेरे को अशांति ही प्रदान करेगा। अतः मुझे मेरा त्रिकालीभाव जिसको आगम में ज्ञायकभाव के नाम से कहा है । उसको समझकर उसमें अपनापन स्थापन करूँ तो वह स्थाई ज्ञायकभाव हमेशा एकरूप ही रहने से, स्थाई शांति का प्रदाता होगा। ऐसी तीव्र जिज्ञासा खड़ी होने पर वह आत्मार्थी सत्समागम, युक्ति एवं आगम के माध्यम से उस अव्यक्त त्रिकाली ज्ञायकभाव को समझने का पुरूषार्थ करता है। पक्का निर्णय कर अपने अनुमान ज्ञान में अव्यक्त को व्यक्त करके पूर्ण श्रद्धावान होता है। पक्के निर्णय एवं अनुमान ज्ञान में स्पष्ट हो जाने पर जैसे-जैसे श्रद्धा दृढ होती जाती है, ज्ञान की भी पर सन्मुखता ढीली पड़ जाती है। कुछ ही समय में ज्ञान स्वसन्मुख होकर उस स्थाई भाव, अकर्त्ता स्वभावी ज्ञायकभाव में अपनापन स्थापन करता है। इससे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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