Book Title: Sukhi Hone ka Upay Part 2
Author(s): Nemichand Patni
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 69
________________ 51) (सुखी होने का उपाय होकर उसकी दृढ़ता के साथ प्रतीति करता है, तब उसके फलस्वरूप उसको स्वज्ञेय रुपी निज आत्मद्रव्य से मिलन करने अर्थात् प्रत्यक्ष करने का यथार्थ मार्ग प्राप्त होता है। पं. टोडरमलजी ने मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ 258 में भी कहा है कि " तथापि परीक्षा करने में अपना विवेक चाहिये, सो विवेकपूर्वक एकान्त में अपने उपयोग में विचार करे कि जैसा उपदेश दिया वैसे ही है या अन्यथा है ? वहां अनुमानादि प्रमाण से बराबर समझे । अथवा उपदेश तो ऐसा है, और ऐसा न माने तो ऐसा होगा, सो इनमें प्रबल युक्ति कौन है और निर्बल कौन है? जो प्रबल भासित हो उसे सत्य जाने तथा यदि उपदेश से अन्यथा सत्य भासित हो, अथवा उसमें सन्देह रहे, निर्धार न हो, तो जो विशेषज्ञ हों उनसे पूछे, और वे उत्तर दें उसका विचार करें। इसप्रकार जबतक निर्धार न हो, तबतक प्रश्न-उत्तर करें। अथवा समान बुद्धि के धारक हों, उनसे अपना विचार जैसा हुआ हो, वैसा कहें और प्रश्न-उत्तर द्वारा परस्पर चर्चा करें, तथा जो प्रश्नोत्तर में निरूपण हुआ हो उसका एकान्त में विचार करें, इसीप्रकार जबतक अपने अंतरंग में जैसा उपदेश दिया था, वैसा ही निर्णय होकर भावभासित न हो तबतक इसीप्रकार उद्यम ( पुरुषार्थ) किया करे। "ऐसा उद्यम करने पर जैसा जिनदेव का उपदेश है, वैसा ही सत्य है, मुझे भी इसीप्रकार भासित होता है, ऐसा निर्णय होता है। " उपर्युक्त समस्त प्रक्रिया तो मात्र अपने स्वजन रूपी स्वज्ञेय को खोजने की यथार्थ विधि अर्थात् सत्यार्थ मार्ग समझने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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