Book Title: Sukhi Hone ka Upay Part 2
Author(s): Nemichand Patni
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 76
________________ सुखी होने का उपाय) 158 परसन्मुखता का अभाव करके स्वसन्मुखता प्रगट करने का एकमात्र उपाय यह ही है कि ऐसी श्रद्धा उत्पन्न हो कि समस्त ज्ञेय-पदार्थ इस आत्मा से एकदम भिन्न हैं, पर है, उपेक्षणीय हैं और एकमात्र मेरा ज्ञाता स्वभावी स्वआत्मद्रव्य ही मैं हँ, यही मेरा सर्वस्व है, अभिन्न है और मेरे लिये यही मात्र एक अपेक्षा करने योग्य अर्थात् मुख्य है, निश्चय है, जो कुछ कहो यही है, इसप्रकार की श्रद्धा जाग्रत होते ही स्वसन्मुखता प्रगट हो जाती है। समयसार ग्रन्थ के कलश २०० में आचार्य अमृतचंद्रदेव ने कहा भी है कि नास्तिसर्वोऽपि संबंधः परद्रव्यात्मतत्त्वयोः । कर्तृकर्मत्वसंबंधाभावे तत्कर्तृता कुतः ॥ अर्थ :- परद्रव्य और आत्मद्रव्य का (कोई भी) सम्बन्ध नहीं है, इसप्रकार कर्तृत्व कर्मत्व के संबंध का अभाव होने से आत्मा के परद्रव्य का कर्तृत्व कहाँ से हो सकता है? इसप्रकार परसन्मुखता का अभाव कर स्वसन्मुखा करने का यही एकमात्र उपाय है। मात्र स्वज्ञेयतत्त्व ही अनुसंधान करने योग्य है. हमने यहाँ मूल विषय ज्ञेय एवं हेय-उपादेय तत्त्वों के विषय के अंतर्गत "ज्ञेयतत्त्व " के संबंध में विस्तार से चर्चा की। ज्ञेयतत्त्वों की अपरिमित संख्या होने पर भी उन सब ज्ञेयों में एकमात्र स्वआत्मद्रव्य को ही स्वज्ञेय जानकर व मानकर बाकी अपरिमित विस्तार में विस्तृत समस्त ज्ञेयतत्त्वों को अपनी आत्मा से पर हैं- यह जानना व मानना चाहिए। सभी परज्ञेयों से श्रद्धा में सभी प्रकार के संबंध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122