Book Title: Sukhi Hone ka Upay Part 2
Author(s): Nemichand Patni
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 80
________________ सुखी होने का उपाय) (62 ऐसा आत्मार्थी जीव अपनी आत्मिक शांति प्राप्त करने के उद्देश्य से अपने स्वयं के आत्मा के अनुसंधान में तीव्र रुचि से लग जाता है, क्योंकि उसे यह विश्वास जाग्रत हो गया है कि मेरी शांति कहीं बाहर से नहीं आ सकती, शान्ति तथा अशान्ति दोनों ही मेरी स्वयं की पर्याय में ही होती हुई अनुभव में आती है, अतः आत्मिक शांति भी मेरे अन्दर ही है, अन्दर से ही पर्याय में प्रगट होगी आदि-आदि ऐसा आत्मार्थी जीव जब आत्मा का अनुसंधान करता है, तो उसको आनेवाली अनेक समस्याओं के संबंध में विस्तृत विचार करना आवश्यक है, क्योंकि इनके निवारण होने से ही उसके प्रयोजन की सिद्धि होगी। इसप्रकार के आत्मानुसंधान के लिये सहज ही शास्त्रों के अध्ययन करने की रुचि होती है। सत्समागम के द्वारा अपने अनुसंधान में आने वाली कठिनाइयों के निवारण के लिये उनका समागम प्राप्त करने का प्रयत्न करता है। अनुसंधान के सहायक ऐसे चिन्तन मनन करने के लिये एकान्त प्राप्त करने का प्रयत्न करता है। अपनी आत्मिक शांति प्राप्त करने के उपरोक्त प्रयत्नों की कठिनता और दुर्लभता अनुभव करते हुवे, जो इसप्रकार के पुरुषार्थ द्वारा आत्मानुसंधान पूर्वक आत्मसाधना के द्वारा आत्मिक शाति प्राप्त कर चुके हैं, ऐसे अरहंत सिद्ध परमात्माओं के प्रति हदय में अत्यन्त भक्ति उमड़ने से उनकी पूजा भक्ति आदि के कार्य भी करता है। आत्मसाधना के कार्य में संलग्न साधक जीव को अपने से आगे बढ़ चुके हैं उनके प्रति सहज ही तारतम्यतानुसार आदरभाव वर्तता है अतः उनका अनुकरण एवं समागम का प्रयत्न करता रहता है। इसप्रकार ऐसे आत्मार्थी जीव का जीवन ही परिवर्तित हो जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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