Book Title: Sukhi Hone ka Upay Part 2
Author(s): Nemichand Patni
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 77
________________ 59) (सुखी होने का उपाय तोड़कर उनके प्रति उपेक्षित होकर, एकमात्र स्व को ही अनुसंधान एवं विस्तारपूर्वक समझने योग्य मानकर, अन्य सब ज्ञेयों की चिन्ता छोड़कर एवं उनके प्रति निरर्थक, भटकनेवाली बुद्धि को समेटकर, एकमात्र स्वज्ञेय के अनुसंधान में ही जीवन के बचे हुए क्षण लगाकर यथार्थ निर्णय प्राप्त करना ऐसा ध्येय बनाना चाहिए। इस ही से प्रयोजन की सिद्धि संभव है। उपर्युक्त निर्णय करने के बाद अपने स्वज्ञेतत्त्व को कैसे समझना? इस विषय पर चर्चा करेंगे। स्वज्ञेयतत्त्व के अनुसंधान की पद्धति "सुखी होने का उपाय भाग-१" के माध्यम से हमने विस्तारपूर्वक भलीभाँति यह समझा है कि इस विश्व में जाति अपेक्षा छह प्रकार के और संख्या अपेक्षा अनंतानंत द्रव्यों में कोई भी द्रव्य किसी दूसरे द्रव्य की किसी भी एक समय की पर्याय में भी कुछ नहीं कर सकता। हर एक द्रव्य जो भी करता है, अपने द्रव्य में ही करता है। अतः मैं भी एक आत्मद्रव्य हूँ और अपने ही स्वक्षेत्र में रहते हुए अपनी ही पर्यायों में कुछ भी कर सकता हूँ पर किसी भी द्रव्य अथवा उसकी किसी भी पर्याय में कुछ भी नहीं कर सकता। इसलिए मेरे कार्य मेरे ही द्रव्य तक सीमित है, पर के साथ कुछ भी लेना-देना नहीं है। तत्पश्चात् चर्चित विषय ज्ञान व ज्ञेय के विभागीकरण अर्थात् स्व-पर भेदज्ञान विषय के अन्तर्गत भी हमने यह समझा कि एकमात्र मेरे आत्मद्रव्य के अतिरिक्त जगत के सभी पदार्थ अपने द्रव्य-गुण-पर्यायों सहित, मेरे ज्ञेयमात्र ही नहीं, परज्ञेय है, और मेरा आत्मद्रव्य स्वयं ज्ञाता भी है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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