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(सुखी होने का उपाय स्वज्ञेय की यथार्थ खोज में परज्ञेय उपेक्षित
हो ही जाते हैं- इसी विषय को दृष्टान्त के माध्यम से समझेंगे, जैसे किसी व्यक्ति को अपरिचित नगर में अपने स्वजन के पास जाना हो, और उसका निवास स्थान भी किसी अप्रसिद्ध गली आदि में हो, तो वह व्यक्ति उस अपने स्वजन को खोजने के लिए क्या पद्धति अपनावेगा ? इस पर विचार करना चाहिए।
सर्वप्रथम वह उस नगर में अपने स्वजन के मोहल्ले का पता पूछेगा, उस मोहल्ले तक पहुंचने का मार्ग भी समझेगा, मार्ग में आनेवाले नामांकित चौराहे, मोहल्ले आदि के सम्बन्ध में भी समझेगा। उस मोहल्ले में पहुंच जाने पर भी उस गली में पहुंचने के लिए नामांकित स्थानों, भवनों, व्यक्तियों की जानकारी प्राप्त करेगा, व्यक्तियों से भी परिचय करेगा। इसप्रकार सब जानकारी प्राप्त करते-करते खोजते-खोजते जब वह अपने स्वजन के निवास पर पहुंच जाता है, उससमय ही वह स्वजन मिलन के आनन्द की अनुभूति में और अपने स्वजन से आत्मीयता प्राप्त कर ऐसा आनन्दित हो जाता है कि मोहल्लों, उनका मार्ग, नामांकित स्थान, गली के मकान, उस स्वजन के घर तक पहुचने के लिए जिन-जिन गली से मकानों को समझने के लिए इतना भारी श्रम उठाया था तथा जिन-जिन ने संपर्क किया था, उन लोगों तथा उन-उन सबकी सहायता के बिना वह स्वजन के निवास पर पहुंच भी नहीं सकता था, इतने भारी उपकारी को भी तत्समय ही भुला देता है, इसमें किंचित् भी संकोच नहीं करता। यथार्थ स्थिति भी यही है कि उन सबको जानने का मुख्य उद्देश्य ही स्वजन
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