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सुखी होने का उपाय)
(38 पृष्ठ 278 "वह उपदेश दो प्रकार से दिया जाता है एक तो व्यवहार ही का उपदेश देते हैं। एक निश्चय सहित व्यवहार का उपदेश देते हैं। वहाँ जिन जीवों के, निश्चय का ज्ञान नहीं है व उपदेश देने पर भी नहीं होता दिखायी देता, ऐसे मिथ्यादृष्टिजीव कुछ धर्म सन्मुख होने पर उन्हें व्यवहार ही का उपदेश देते हैं, तथा जिन जीवों को निश्चय-व्यवहार का ज्ञान है व उपदेश देने पर उनका ज्ञान होता दिखायी देता है, ऐसे सम्यग्दृष्टि जीव व सम्यक्त्व के सन्मुख मिथ्यादृष्टि जीव उनको निश्चय सहित व्यवहार का उपदेश देते हैं।"
"वहाँ व्यवहार उपदेश में तो बाह्य क्रियाओं की ही प्रधानता है, उनके उपदेश से जीव पाप क्रियाओं को छोड़कर पुण्य क्रियाओं में प्रवर्तता है।" ___पृष्ठ २७९ :- "तथा निश्चयसहित व्यवहार के उपदेश में परिणामों की ही प्रधानता है उसके उपदेश से तत्त्वज्ञान के अभ्यास द्वारा व वैराग्य भावना द्वारा परिणाम सुधारे वहाँ परिणाम के अनुसार बाह्य क्रिया भी सुधर जाती है। परिणाम सुधरने पर बाह्य क्रिया सुधरती ही है, इसलिये श्री गुरू परिणाम सुधारने का मुख्य उपदेश देते हैं। __ "पृष्ठ २७९ "जहाँ निश्चय सहित व्यवहार का उपदेश हो, वहाँ सम्यग्दर्शन के अर्थ यथार्थ श्रद्धान कराते हैं। उनका जो निश्चयस्वरूप है, सो भूतार्थ है, व्यवहार स्वरूप है, सो उपचार है ऐसे श्रद्धान सहित व स्वरूप के भेदज्ञान द्वारा पर द्रव्य में रागादि छोड़ने के प्रयोजन सहित उन तत्त्वों का श्रद्धान करने का उपदेश देते हैं।" . ___ "पृष्ठ २८० - "तथा चरणानुयोग में तीव्रकषायों का कार्य छुड़ाकर मंदकषाय रूप कार्य करने का उपदेश देते
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