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(सुखी होने का उपाय महत्वपूर्ण-जानकरी इस अधिकार में दी गई है, अतः अभ्यासी को पूरा अधिकार भले प्रकार समझना चाहिये।
निष्कर्ष यहाँ पर तो हमारा मुख्य विषय है कि तत्त्वनिर्णय के द्वारा अर्थात् अपने आत्मस्वरूप के निर्णय के द्वारा आत्मा को सुखी होने के उपाय का संक्षिप्त व सरल मार्ग ढूंढना हैं। उपर्युक्त चारों अनुयोगों की कथनपद्धति के अध्ययन से भी यही निष्कर्ष निकलता है कि अपने आत्मस्वरूप की यथार्थ स्थिति का निर्णय करने के लिए सबसे ज्यादा उपयोगी तो सर्वप्रथम द्रव्यानुयोग के अभ्यास के द्वारा स्व-पर का यथार्थ ज्ञान अर्थात् भेदज्ञान प्राप्त करना ही है, क्योंकि निर्णय कराने की पद्धति का विवेचन तो एकमात्र द्रव्यानुयोग में ही है। जैसा कि पृष्ठ २७१ पर सभी अनुयोगों के कथनों का प्रयोजन बताते हुए द्रव्यानुयोग का प्रयोजन बताया है कि "जो जीव जीवादिक द्रव्यों को व तत्त्वों को नहीं पहिचानते, आपको परको भिन्न नहीं जानते, उन्हें हेतु-दृष्टान्त युक्ति द्वारा व प्रमाण नयादि द्वारा उनका स्वरूप इसप्रकार दिखाया है, जिससे उनको प्रतीति हो जाय।" अतः हमको अपने जीवन की अल्पता, आयु, बुद्धि, बल की हीनता आदि का विचार करते हुये सर्वप्रथम एकमात्र द्रव्यानुयोग में से भी अपने लिए प्रयोजनभूत अत्यन्त सरल व संक्षिप्त मार्ग ढूंढ निकालना है।
उक्त संदर्भ में हमने "तत्त्वनिर्णय का विषय क्या हो?" शीर्षक के अन्तर्गत मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ २४८ में निर्देशित यह सरलतम व सत्य मार्ग समझा है कि हमको अपने आत्मा की शान्ति के लिये मात्र हेय, उपादेय एवं ज्ञेय तत्त्वों के स्वरूप को ही भली प्रकार समझना है।
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