Book Title: Sukhi Hone ka Upay Part 2
Author(s): Nemichand Patni
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 61
________________ 43) (सुखी होने का उपाय हम अगर थोड़ा गंभीरतापूर्वक विचार करें तो हमको अपने स्वयं के अनुभव द्वारा भी उक्त तथ्य की पुष्टि होती है। उपर्युक्त संदर्भ में हम अपने स्वयं के आत्मा के सम्बन्ध में ही विचार करें कि मेरा आत्मा भी जीव द्रव्य है ऐसा अस्तित्व मेरे ज्ञान में आ ही रहा है, अतः मेरा ही द्रव्य मेरे ज्ञान का ज्ञेय सिद्ध होता है। मेरी आत्मा में चेतनपना है, जानने की क्रिया जिसमें हो रही है ऐसा ज्ञान गुण भी है, जो वस्तु आत्मा से अलग हैं उनके सम्बन्ध में भी मेरेपने की उल्टी मान्यता जिसमें हो रही है ऐसा श्रद्धा नाम का गुण भी है, उनको रखने के लिये राग रूप भाव तथा दूर करने के लिये द्वेषरूप भाव जिसमें हो रहा है - ऐसा चारित्र गुण का विपरीत कार्य भी है, इससे हमारे वेदन में आता हुआ आकुलता रुपी दुःख भी जिसमें हो रहा है ऐसी विपरीतता का वेदनरूप सुख गुण भी है इसीप्रकार इस आत्मा में अनेक प्रकार के गुण, स्वभाव, क्वालिटियां एक साथ है, वे सब भी मेरे ज्ञान के जानने में आ रहे है अतः वे सभी ज्ञेय है। पलटकर क्षमा, इसी प्रकार उपर्युक्त गुणों का अनुभवन हर समय पलटता हुआ हमारे अनुभव में आ रहा है, जैसे- क्रोध मान पलटकर निर्मानता आदि-आदि वह सब भी मेरे ज्ञान में ज्ञात होने के कारण, वे सब पर्याये भी ज्ञेय है। इसप्रकार मेरे स्वयं के अनुभव से सिद्ध होता है कि मेरा आत्मा द्रव्य, गुण, पर्यायों सहित मेरे ज्ञान में ज्ञेय हो रहा है। साथ ही ज्ञान की विशेषता और भी है कि मेरा ज्ञान उपर्युक्त प्रकार के के सब परिणमनों को जानने साथ- साथ ही, पर द्रव्यों को भी उनके प्रत्यक्ष गुण- पर्यायों सहित अपने ज्ञान से जानता है, भी ज्ञेय है। यह भी हमारे अनुभव में हैं, Jain Education International For Private & Personal Use Only अतः वे सब अतः अपने www.jainelibrary.org

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