________________
सुखी होने का उपाय)
(44
अनुभव प्रमाण के द्वारा यह स्पष्टतया विश्वास में आता है कि हर एक द्रव्य उन-उन के गुण पर्यायों सहित ज्ञान के द्वारा जानने में आते है, अतः वे सबके सब ज्ञेयतत्त्व है। इस प्रकार ज्ञेय तत्त्व में सारे जगत के छह द्रव्यों के उन-उनके गुण पर्यायों सहित सबका समावेश हो जाता है, इस प्रकार ज्ञेयतत्त्वं के बाहर कुछ रह ही नहीं जाता, इस प्रकार ज्ञेयतत्त्व का विस्तार समझना चाहिए।
प्रवचनसार कलश की टीका के ज्ञेय तत्त्वप्रज्ञापन प्रारंभ करने के पूर्व कहा है कि- " आत्मा रूपी अधिकरण में रहने वाले अर्थात् आत्मा के आश्रित रहनेवाले ज्ञानतत्त्व का इस प्रकार निश्चय करके उसकी सिद्धि के लिये प्रशम के लक्ष्य से ज्ञेयतत्त्व को जानने का इच्छुक जीव सर्वपदार्थो को द्रव्यगुण पर्याय सहित जानता है, जिससे कभी मोहादिक की उत्पत्ति न हो। "
उपर्युक्त ज्ञेयतत्त्व का इतना विशालतम विस्तार सुनकर एक गंभीर उलझन उत्पन्न होती है, कि इतने बड़े विस्तार को समझना कैसे ? तथा यह सब समझने से हमारी आत्मा को शान्ति कैसे प्राप्त होगी ? इस समस्या के समाधान में हमको हमारा प्रयोजन जो आत्मशान्ति है, जिसको प्राप्त करने की दृष्टि को मुख्य बनाकर समस्त ज्ञेयतत्त्वों को विभागीकरण पूर्वक समझना चाहिए।
.
ज्ञेयतत्त्वों का स्व पर विभागीकरण,
ज्ञेयतत्त्वों को स्वपर के विभागीकरण पूर्वक समझना ही, भेदज्ञान प्रगट करने का उपाय है। जबकि जगत् के छहों द्रव्य अपने-अपने गुण पर्यायों सहित एक ज्ञेय-तत्त्व में समाविष्ट हो जाते हैं, तब हमको हमारे प्रयोजन की सिद्धि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org