Book Title: Sukhi Hone ka Upay Part 2
Author(s): Nemichand Patni
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 60
________________ सुखी होने का उपाय) . (42 उनके समझने में भी जेय तत्त्वों में स्वजीव को स्वज्ञेय के रूप में अहंपना स्थापन करते हुये, अपने अतिरिक्त अन्य जीवादि समस्त छह द्रव्यों को परज्ञेय तरीके निर्णय में लेकर परपना स्थापन करने के लिये समझना है, तथा अपने अन्दर ही होनेवाले आत्मा के भावों में भी कौन भाव छोड़ने अर्थात् अभाव करने योग्य है तथा कौन से भाव रखने योग्य अर्थात्. उत्पन्न करने योग्य हैं, ऐसा। विवेकपूर्वक यथार्थ निर्णय करके, छोड़ने योग्य भावों में हेयबुद्धि तथा उत्पन्न करने योग्य भावों में उपादेयबुद्धि प्रगट कर यथार्थ श्रद्धा उत्पन्न करना, यह ही एकमात्र संक्षिप्त, सारभूत एवं सरलतम उपाय अर्थात् मोक्षमार्ग है। ज्ञेय एवं हेय उपादेय तत्त्वों के सम्बन्ध में ज्ञेयतत्त्व . ज्ञेयतत्त्व का विस्तार बहुत विस्तृत है, जगत् में जिसकी सत्ता है अर्थात् अस्तित्त्व है, वह सब जानने में आता है वही सब ज्ञेयतत्त्व है, जो जानने में नहीं आवे ऐसा कुछ है ही नहीं, अतः ज्ञेयतत्त्व में विश्व के समस्त पदार्थ आ जाते हैं। __सम्पूर्ण विश्व छह द्रव्यों के अतिरिक्त कुछ है ही नहीं, अतः छह द्रव्य जो जाति अपेक्षा छह प्रकार के होते हुए भी संख्या अपेक्षा अनंतानंत हैं और वे द्रव्यगुणपर्यायात्मक होने से, उन अनंतानंत द्रव्यों में से हर एक द्रव्य तथा उनके अनंतगुण और हर एक गुण की काल की. अपेक्षा हर समय नवीन-नवीन पर्याय उत्पन्न होती है, अतः वे सब भी अनंतानंत हैं। और वे सब ही ज्ञेयतत्त्व में समाविष्ट हो जाती हैं इतना विस्तार है ज्ञेयतत्त्व का। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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