Book Title: Sukhi Hone ka Upay Part 2
Author(s): Nemichand Patni
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 41
________________ 23) (सुखी होने का उपाय में अपना विवेक चाहिये, सो विवेकपूर्वक एकान्त में अपने उपयोग में विचार करे कि जैसा उपदेश दिया वैसे ही है या अन्यथा है ? वहाँ अनुमानादि प्रमाण से बराबर समझे। अथवा उपदेश तो ऐसा है ऐसा न माने तो ऐसा होगा; सो इनमें प्रबल युक्ति कौन है और निर्बल युक्ति कौन है ? जो प्रबल भासित हो उसे सत्य जाने तथा यदि उपदेश से अन्यथा सत्य भासित हो, अथवा उसमें सन्देह रहे, निर्धार न हो; तो जो विशेषज्ञ हों, उनसे पूछे, और वे उत्तर दें, उसका विचार करे। इसी प्रकार जबतक निर्धार न हो तबतक प्रश्न-उत्तर करे, अथवा समानबुद्धि के धारक हो उनसे अपना विचार जैसा हुआ हो वैसा कहे और प्रश्न-उत्तर द्वारा परस्पर चर्चा करे; तथा जो प्रश्नोत्तर में निरूपण हुआ हो उसका एकान्त में विचार करे। इसीप्रकार जबतक अपने अतरंग में जैसा उपदेश दिया था, वैसा ही निर्णय होकर भावभासित न हो तबतक इसीप्रकार उद्यम किया करे।" __ " ऐसा उद्यम करने पर जैसा जिनदेव का उपदेश है वैसा ही सत्य है, मुझे भी इसीप्रकार भासित होता है-ऐसा निर्णय होता है।" आगे महत्वपूर्ण बात और लिखते हैं कि - "जिनवचन और अपनी परीक्षा में समानता हो, तब तो जाने कि परीक्षा सत्य हुई। जबतक ऐसा न हो तबतक जैसे कोई हिसाब करता है और उसकी विधि न मिले तबतक अपनी चूक को ढूँढ़ता हूँ, उसीप्रकार यह अपनी परीक्षा में विचार किया करे।" इसप्रकार पंडितप्रवर टोडरमलजी साहब ने तत्वनिर्णय करने की विधि (पद्धति) बहुत भलीप्रकार से स्पष्ट करके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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