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(सुखी होने का उपाय में अपना विवेक चाहिये, सो विवेकपूर्वक एकान्त में अपने उपयोग में विचार करे कि जैसा उपदेश दिया वैसे ही है या अन्यथा है ? वहाँ अनुमानादि प्रमाण से बराबर समझे। अथवा उपदेश तो ऐसा है ऐसा न माने तो ऐसा होगा; सो इनमें प्रबल युक्ति कौन है और निर्बल युक्ति कौन है ? जो प्रबल भासित हो उसे सत्य जाने तथा यदि उपदेश से अन्यथा सत्य भासित हो, अथवा उसमें सन्देह रहे, निर्धार न हो; तो जो विशेषज्ञ हों, उनसे पूछे, और वे उत्तर दें, उसका विचार करे। इसी प्रकार जबतक निर्धार न हो तबतक प्रश्न-उत्तर करे, अथवा समानबुद्धि के धारक हो उनसे अपना विचार जैसा हुआ हो वैसा कहे और प्रश्न-उत्तर द्वारा परस्पर चर्चा करे; तथा जो प्रश्नोत्तर में निरूपण हुआ हो उसका एकान्त में विचार करे। इसीप्रकार जबतक अपने अतरंग में जैसा उपदेश दिया था, वैसा ही निर्णय होकर भावभासित न हो तबतक इसीप्रकार उद्यम किया करे।" __ " ऐसा उद्यम करने पर जैसा जिनदेव का उपदेश है वैसा ही सत्य है, मुझे भी इसीप्रकार भासित होता है-ऐसा निर्णय होता है।"
आगे महत्वपूर्ण बात और लिखते हैं कि - "जिनवचन और अपनी परीक्षा में समानता हो, तब तो जाने कि परीक्षा सत्य हुई। जबतक ऐसा न हो तबतक जैसे कोई हिसाब करता है और उसकी विधि न मिले तबतक अपनी चूक को ढूँढ़ता हूँ, उसीप्रकार यह अपनी परीक्षा में विचार किया करे।"
इसप्रकार पंडितप्रवर टोडरमलजी साहब ने तत्वनिर्णय करने की विधि (पद्धति) बहुत भलीप्रकार से स्पष्ट करके
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