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सुखी होने का उपाय)
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उपर्युक्त आगम प्रमाणों से भी यह निश्चित होता है कि सर्वप्रथम उपदिष्ट तत्त्व का धारण एवं विचार होकर दृढ़तम निर्णय होना चाहिए, उसी से सम्यक श्रद्धा का जन्म होगा !
तत्त्वनिर्णय करने की विधि
अध्ययन के बाद चिन्तन-मनन के द्वारा निर्णय करना आवश्यक होते हुए भी निर्णय करने की विधि भी जानना आवश्यक है। अतः शास्त्रोक्त विधि को . समझना अत्यन्त आवश्यक है। उपरोक्त दृष्टिकोण से अंतरंगरुचि पूर्वक समझने समझने का पुरुषार्थ करनेवाले आत्मार्थी जीव को निर्णय करने की विधि (पद्धति) भी आचार्यकल्प पंडित टोडरमलजी ने मोक्षमार्ग प्रकाशक ग्रन्थ के पृष्ठ २५७ पर निम्नप्रकार बताई है
" वहाँ अपने प्रयोजनभूत मोक्षमार्ग के, देव-गुरू-धर्मादिक के, जीवादि तत्त्वों के तथा निज-पर की ओर अपने को अहितकारी - हितकारी भावों के... इत्यादि के उपदेश से सावधान होकर ऐसा विचार किया कि अहो ! मुझे तो इन बातों की खबर ही नहीं, मैं भ्रम से भूलकर प्राप्त पर्याय में ही तन्मय हुआ, परन्तु इस पर्याय की तो थोड़े ही काल की स्थिति है; तथा यहाँ मुझे सर्व निमित्त मिले हैं, इसलिये मुझे इन बातों को बराबर समझना चाहिए, क्योंकि इनमें तो मेरा ही प्रयोजन भासित होता है। ऐसा विचार कर जो उपदेश सुना उसके निर्धार (निर्णय) करने का उद्यम किया। "
वहाँ नाम सीख लेना और लक्षण जान लेना यह दोनों तो उपदेश के अनुसार होते हैं जैसा उपदेश दिया हो वैसा याद कर लेना तथा परीक्षा करने
"
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