Book Title: Sukhi Hone ka Upay Part 2
Author(s): Nemichand Patni
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 39
________________ 21) ___ (सुखी होने का उपाय " तथा इस अवसर में जो जीव पुरुषार्थ से तत्त्वनिर्णय करने में उपयोग लगाने का अभ्यास रखें, उनके विशुद्धता बढ़ेगी, उससे कर्मों की शक्ति हीन होगी, कुछ काल में अपने-आप दर्शनमोह का उपशम होगा, तब तत्त्वों की यथावत् प्रतीति आवेगी, सो इसका तो कर्तव्य तत्त्वनिर्णय का अभ्यास ही है।" समयसार गाथा १४४ की टीका में आचार्य अमृतचन्द्र ने कहा है कि - " यतः प्रथमतः श्रुतज्ञानावष्टंभेन ज्ञानस्वभावमात्मानं निश्चित्या" अर्थ - प्रथम श्रतज्ञान के अवलम्बन से ज्ञानस्वभाव आत्मा का निश्चय करके.... आदि-आदि। इसीप्रकार आचार्य कुन्दकुन्द देव ने प्रवचनसार की गाथा ८६ में कहा है कि - जिणसत्थादो अढे पच्चक्खादीहि बुज्झदो णियमा। खीयदि मोहोवचयो तम्हा सत्थं समधिदव्वं ॥ अर्थ:- जिनशास्त्र द्वारा प्रत्यक्षादि प्रमाणों से पदार्थों को जाननेवाले के नियम से मोहसमूह क्षय हो जाता है। इसलिये शास्त्र का सम्यक प्रकार से अध्ययन करना चाहिए। इसी गाथा की टीका में आचार्य अमृतचंद्र ने लिखा है कि - ___ "जिसने प्रथम भूमिका में गमन किया है, ऐसे जीव को जो सर्वज्ञोपज्ञ होने से सर्वप्रकार से अबाधित है, ऐसे शब्दप्रमाण (द्रव्यश्रुतप्रमाण) को प्राप्त करके... तत्वतः अवश्य ही क्षय को प्राप्त होता है।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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