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(सुखी होने का उपाय मैं भी एक हैं। अतः मैं कितना भाग्यशाली हैं; इसलिए अब अपने जीवन को व्यर्थ नहीं खोकर मैं तो अपने आत्मधर्म को प्राप्त करूँगा आदि-आदि विचारोंवाला प्राणी सत्समागम प्राप्त करने का प्रयास करता है। ऐसे भावों को .. विशुद्धिलब्धि की प्राप्ति कहते हैं।
३. देशनालब्धि उपर्युक्त पात्र जीव जब सत् अर्थात् अपने आत्म के कल्याण का मार्ग समझने के लिये सत्समागम का अभिलाषी होकर ज्ञानी गुरू के पास आता है, उस पात्र जीव को सत्समागम के माध्यम से जो भी उपदेश मिलता है, उसका बुद्धि में धारण होकर ग्रहण हो तथा उस पर स्वकल्याण के ध्येय से गंभीरता पूर्वक विचार चले, उस ज्ञान की दशा को देशनालब्धि कहते हैं। - देशना अर्थात् मोक्षमार्ग प्राप्त करने का उपदेश। उस उपदेश का ही विस्तार सारा जिनागम अर्थात् द्वादशांग वाणी है। सारी द्वादशांग वाणी के उपदेश का सार इस संसारी प्राणी को संसार दुःख से छूटने का उपाय बताना ही तो है। आचार्य समन्तभद्र ने रत्नकरण्डश्रावकाचार में कहा भी है कि -
देशयामि समीचीनं धर्म कर्म निवहण
संसारदुःखतः सत्वान् धरत्युत्तमे सुखे॥२॥ अर्थः- मैं उस समीचीन धर्म को कहँगा, जो कर्म (भावकर्म ) का नाश करके, ससार-दुःख से छुड़ाकर इस संसारी प्राणी को उत्तम सुख (मोक्षसुख) को प्राप्त करा देवे।
तात्पर्य यह है कि देशना अर्थात् सच्चा उपदेश वही है. जिसमें संसार भ्रमण के कारणो को समझाकर, उनके अभाव
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