________________
13)
(सुखी होने का उपाय जानकारियों से हमको उस मार्ग से गमन करना अत्यन्त सरल हो जावेगा। साथ ही आत्मविश्वास जाग्रत हो जाने से मन की भटकन खत्म होकर हमारी चलने की गति भी बढ़ जावेगी।
इसीप्रकार आत्मार्थी जीव को मोक्षमार्ग में गमन करने के पूर्व उसका मार्ग समझने के लिए, उनसे ही सम्पर्क करना कार्यकारी होगा, जिन्होंने स्वयं उस मार्ग को यथार्थ समझकर उस मार्ग के द्वारा गंतव्य प्राप्त कर लिया हो अथवा उस पर गमन कर रहे हों अर्थात् साधना कर रहे हों, वे ही सच्चे मार्गप्रदाता अर्थात् सच्चे उपदेशक हो सकते हैं।
तात्पर्य :- यह है कि सच्ची देशना के प्रदाता तो भगवान अरहंत ही है। अरहंत भगवान का आत्मा भी पहले तो हमारे जैसा ही आत्मा था। उनने भी सच्ची देशना के द्वारा अपनी आत्मा का स्वरूप अर्थात् मोक्षमार्ग का स्वरूप समझ कर, जगत् से उपेक्षित होकर, अपने ही पुरुषार्थ द्वारा उपरोक्त मार्ग की अपने आत्मा में साधना कर, पूर्णता को प्राप्त हो, सर्वज्ञदशा प्राप्त की। सर्वज्ञ का ज्ञान क्षायिक ले जाने से प्रत्यक्षज्ञान हो गया, अतः उनके ज्ञान में मार्ग तथा मार्ग का फल तथा उसके द्वारा प्राप्त आत्मानुभूति आदि सब प्रत्यक्ष होकर दिव्यध्वनि के माध्यम से जो भी स्वरूप प्रकाशित होता है, वह ही परम सत्य मार्ग है। अतः सर्वोत्कृष्ट उपदेशक तो भगवान अरहंत ही
मध्यम उपदेशक चारित्र धारक आचार्य, उपाध्याय एव साधु परमेष्ठी हैं, जिन्होंने यथार्थ मार्ग समझकर व आत्म में परिणमित करके, उस मार्ग का फल जो आत्मा के आनंद की अनुभूति, उसका प्रत्यक्ष स्वाद लिया है एव
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org