Book Title: Sukhi Hone ka Upay Part 2
Author(s): Nemichand Patni
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 29
________________ पांच लब्धियों का सार पाँच लब्धियों के प्रकरण के सार को संक्षेप में समझा जावे तो इसप्रकार है- क्षयोपशमलब्धि एवं विशुद्धिलब्धि में पूर्वपुण्य के उदय से जो वर्तमान में पूर्वकथित अनुकूल संयोग प्राप्त हुए, इसमें आत्मा का वर्तमान का पुरुषार्थ नहीं है। लेकिन उपरोक्त संयोग मिलने पर उनका धर्म समझने के लिये ही उपयोग करना, अन्य में नहीं करना, यह आत्मा का वर्तमान का पुरुषार्थ ही है। अतः आत्मा को उक्त संयोगों का पूरा-पूरा लाभ लेना चाहिये । देशनालब्धि पूर्व पुण्योदय से तथा अपनी वर्तमान रुचि के द्वारा सत्समागम प्राप्त हो जाता है। लेकिन उस सत्समागम के अवसर का पूरा-पूरा लाभ उठाकर आत्मा के धर्म को समझने का उग्र पुरुषार्थ करना, यह तो इस आत्मा का वर्तमान पुरुषार्थ है। देशनालब्धि में तत्त्व (आत्मा) के स्वरूप का धारण एवं विचार करने में आत्मा का ज्ञान परलक्षी ही बना रहता है, अतः परलक्षी ज्ञान के माध्यम से प्रमाण-नय-निक्षेप आदि के द्वारा तत्त्व संबंधी निर्णय होता है, वह परोक्षरूप अनुमान ज्ञान पूर्वक विकल्पात्मक निर्णय ही कहा जाता है। इस भूमिकावाले जीव की परज्ञेयों के प्रति कर्त्ताबुद्धि ढीली पड़ जाने से मिथ्यात्व मंद होता जाता है तथा कषाय भी मंद हो जाती है, परन्तु आत्मा को यथार्थ आत्मिक शान्ति प्रगट नहीं होती । : Jain Education International प्रायोग्य एवं करणलब्धि इन दोनों लब्धियों में पूर्व पुण्य के उदय का संबंध नहीं होकर, आत्मा का वर्तमान का उग्र पुरुषार्थ ही कार्य करता है। देशनालब्धि के माध्यम से जो परलक्षी विकल्पात्मक ज्ञान द्वारा अपना त्रिकाली (सुखी होने का उपाय -: For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122