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ली होने का उपाय बलिष्ठ होते
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हटनेवाले
सुखी होने का उपाय) उत्तरोत्तर इतने बलिष्ठ होते जाते हैं कि अब किसी भी प्रकार से अपने ध्येय से पीछे हटनेवाले नहीं हैं। अर्थात् अपने निजात्मा में ही पूर्ण अहंबुद्धि प्रगट कर परज्ञेयों के प्रति अत्यंत उपेक्षित होने से पक्षातिक्रान्त हो जाता है तथा अपने अनंत गुणों की फौज को उपयोग के साथ लेकर एक बार आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर निजात्मा के अतीन्द्रिय आनन्द का उपभोग करेंगे ही। ऐसे परिणामों का विवेचन शब्दों के माध्यम से किया जाना अशक्य है। ये परिणाम केवलीगम्य है अथवा अनुभवगम्य हैं, फिर भी इनका संकेत मोक्षमार्ग प्रकाशक ग्रन्थ के पृष्ठ २६२ में निम्न शब्दों में आया है:
" सो इस करणलब्धिवाले के बुद्धिपूर्वक तो इतना ही उद्यम होता है कि उस तत्त्वविचार में उपयोग को तद्रूप होकर लगाये, उससे समय-समय परिणाम निर्मल होते जाते हैं। तथा इन परिणामों का तारतम्य केवलज्ञान द्वारा देखा, उसका निरूपण करणानुयोग में किया है।"
इस प्रकार करणलब्धि वाला जीव अपने अकर्तास्वभावी त्रिकाली ज्ञायक भाव में ही आत्मबुद्धि प्रगट कर एकबार आत्मसाक्षात्कार करके, निजानंदरस का पानकर, अपनी पर्याय में सम्यग्दर्शनरूपी धर्म प्रगट कर लेता है। इस पर विशेष चर्चा विस्तार से इसी पुस्तक के भाग ३ में करेंगे। वहाँ से एवं जिनवाणी से विस्तार से समझकर हर एक प्राणी अपने अंतर में ऐसा सम्यग्यदर्शनरूपी धर्म प्रगट करें, ऐसी भावना के साथ यह पाँच लब्धियों का प्रकरण समाप्त करता हैं।
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