Book Title: Sramana 2013 04
Author(s): Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 11
________________ 4: श्रमण, वर्ष 64, अंक 2 / अप्रैल - जून 2013 के अवतार माने गए हैं, किन्तु इतना होने पर भी दोनों में प्रमुख अन्तर है कि जहाँ राम अंशावतार हैं वहाँ कृष्ण को पूर्णावतार माना गया है। पूर्णावतार का तात्पर्य है जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में शिखर पर पहुंचा हुआ महापुरुष । राम का जीवन मर्यादित है इसीलिए वे मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाते हैं, किन्तु कृष्ण का जीवन समुद्र की तरह विस्तृत है, कोई मर्यादा उन्हे सीमित नहीं कर सकी अतएव वे पूर्णावतार कहलाए । बाल्यावस्था में कृत विभिन्न प्रकार की चामत्कारिक घटनाएँ, शिशुपाल के मृत्यृदण्ड योग्य सौ अपराधों को क्षमा करना, कंस का संहार करके अत्याचार को जड़ से मिटाने का प्रयास, द्रौपदी की तार-तार होती लज्जा की सुरक्षा, महाभारत का युद्ध टालने के लिए अपने ही अधीनस्थ राजाओं के पास शान्तिदूत बनकर जाना तथा हतोत्साहित अर्जुन को कर्तव्य का बोध कराना और गीता का अद्भुत ज्ञान प्रदान करके कर्मयोग, स्थितप्रज्ञता, अनासक्तयोग आदि की प्रतिष्ठा करना इत्यादि ऐसी विशेषताएँ हैं जिनकी वजह से वे पूर्णावतार कहलाए। उन्हें साक्षात् विष्णु का अवतार माना गया है। देखा जाए तो समूची वैदिक परम्परा कृष्णमय नजर आती है। जिस प्रकार महाभारत में से यदि कृष्ण को निकाल दिया जाए तो कुछ भी सार्थक शेष नहीं बचता, उसी प्रकार वैदिक परम्परा में से यदि कृष्ण को निकाल दिया जाए तो समूची परम्परा अधूरी हो जाती है। वर्तमान में प्राय: सर्वत्र आयोजित होने वाली कृष्ण-लीलाएँ तथा रास-लीलाएँ जनमानस में कृष्ण के प्रभाव को दर्शाने के लिए पर्याप्त हैं। जैन परम्परा में श्रीकृष्ण- कर्मयोगी वासुदेव श्रीकृष्ण के उदात्त व्यक्तित्व ने प्रत्येक भारतीय धर्म-परम्परा को प्रभावित किया है। जैन परम्परा भी इस प्रभाव से स्नात है। २२वें तीर्थंकर अर्हत अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण वासुदेव एक ही कुल के एवं चचेरे भाई रहे हैं।१५ अत: जैन परम्परा में जहाँ-जहाँ अरिष्टनेमि का वर्णन हुआ है वहाँ-वहाँ अनायास ही श्रीकृष्ण का भी वर्णन प्राप्त हो जाता है। उम्र में कृष्ण बड़े थे तो आध्यात्मिक समृद्धि की दृष्टि से तीर्थंकर होने के नाते अरिष्टनेमि बड़े थे। दोनों महापुरुषों का अनुस्यूत जीवन सचमुच में अनेक लोगों के लिए अध्यात्म का मार्ग प्रशस्त करने वाला था । जैन साहित्य में सर्वाधिक महत्व आगम साहित्य का है और यही प्राचीनतम साहित्य है। आगम साहित्य के आधार पर परवर्ती काल में वैविध्यपूर्ण विपुल साहित्य रचा गया जिसमें हमें वासुदेव श्रीकृष्ण का जीवनवृत्त क्रमबद्ध एवं विस्तृत रूपेण प्राप्त हो जाता है, किन्तु उनसे पूर्ववर्ती और प्राचीन - अंग-आगम साहित्य में, जो कि साक्षात् तीर्थंकर महावीर एवं उनके मेधावी शिष्य गणधरों से सम्बंधित है, उनका सम्मान

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