Book Title: Sramana 2013 04
Author(s): Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 106
________________ साहित्य-सत्कार - पुस्तक समीक्षा मन्नह जिणाण आणं (जिनाज्ञा को मानो)- ग्रन्थकर्ता-पूज्य पूर्वाचार्य तात्पर्य संस्कृत प्रबोध दीपिका वृत्तिकार-पूज्यपन्यास प्रवर श्री राजमाणिक्य गणि, संपादक एवं संशोधक- पूज्यपादाचार्य देव श्रीमद्विजयकीर्तियशसूरि, सन्मार्ग प्रकाशन, जैन आराधना भवन, पाछीयानी पोल रिलीफ रोड, अहमदाबाद-३८०००१, प्रकाशन वर्ष २०१३ ई., मूल्य ३००रुपये। इस ग्रन्थ के मूल में पांच प्राकृत पद्य हैं जिनमें ३६ कर्तव्यों के नाम निर्दिष्ट हैं। इसे श्राद्ध दिन कृत्य स्वाध्याय कुलक के रूप में लिखा गया है। तात्पर्यवृत्ति संस्कृत में है तथा उसमें अनेक आगम ग्रन्थों के प्राकृत पद्य तथा कहीं-कहीं संस्कृत के पद्य भी उद्धृत हैं। जैसा कि इस ग्रन्थ का नाम है 'मनह (मन्ह या मन्त्रइ) जिणाण आणं' तदनुसार ही विषयों का विवेचन है। इसमें ३६ प्रकरण हैं-१. जिनाज्ञा स्वरूप २.मिथ्यात्व स्वरूप (मिथ्यात्व का परिहार) ३.सम्यक्त्व निरूपण, ४-९.षडावश्यक-प्ररूपण, १०.पौषधव्रत, ११.दान कर्त्तव्यता, १२.शीलनिरूपण, १३.तपनिरूपण, १४.भाव-स्वरूप, १५.स्वाध्याय-प्ररूपण, १६.नमस्कार वर्णन, १७.परोपकार स्वरूप, १८.यतना निरूपण, १९.जिनपूजा कर्तव्य, २०.जिनस्तवन, २१.गुरुस्तुति, २२. साधर्मिक वात्सल्य, २३.व्यवहार शुद्धि, २४.रथयात्रा, २५.तीर्थयात्रा, २६.उपशमवर्णन, २७.विवेक-निरूपण, २८.संवरप्ररूपण, २९.भाषा-समिति,३०.जीवकरुणा, ३१.धार्मिकजनसंसर्ग, ३२.करण-दमन, ३३.चरण-परिणाम, ३४.संघोपरि बहुमान, ३५.पुस्तक-लेखन और ३६.प्रभावना तीर्थ। इसके बाद ग्रन्थ प्रशस्ति तथा छ: परिशिष्ट हैं जिनमें प्राकृत एवं संस्कृत पद्यों का अकारादिक्रम, वृत्यन्तर्गत कथाओं का अकारादिक्रम, मूलसूत्रगत पाठभेद, कुतुबपुरशाखा-निगम-मत वर्णन तथा श्रावक-करणीय स्वाध्याय। इनमें पञ्चम और षष्ठ परिशिष्ट गुजराती भाषा में हैं। प्रारम्भ में भी गुजराती भाषा में स्वाध्याय तप का तथा ग्रन्थगत विषयवस्तु का प्रतिपादन है। जिनेश्वर भगवान् की आज्ञा मानकर ३६ कर्त्तव्यों (जिनेश्वर आज्ञा का पालन, मिथ्यात्व का त्याग, सम्यक्त्व का स्वीकार आदि) का पालन करना चाहिए। यही इसका उद्देश्य है।

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