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100 : श्रमण, वर्ष 64, अंक 2 / अप्रैल-जून 2013 ग्रन्थ पठनीय है। इसमें उद्धृत प्राकृत-संस्कृत पद्यों को देखकर लेखक की शोध-प्रवृत्ति का परिज्ञान होता है। पाद टिप्पणी में प्राकृत पद्यों की संस्कृत छाया दी गई है जिससे प्राकृत समझने में सुविधा हो गई है।
प्रो. सुदर्शन लाल जैन
दर्शनशद्धिप्रकरणम्-(सम्यक्त्व-प्रकरणम) वादीभसिंह, पूज्याचार्य श्री चन्द्रप्रभसूरीश्व, वृत्तिकार- पूज्य श्री चक्रेश्वरसूरि, पूज्य श्री तिलकसरि तथा पूज्य श्री देवप्रभसूरि, सन्मार्ग प्रकाशन, जैन आराधना भवन, पाछीयानी पोल रिलीफ रोड अहमदाबाद-३८०००१, मूल्य-५००रुपये। मूलग्रन्थ प्राकृत गाथा में है और पांच भागों में विभक्त है- १.देवतत्त्व, २.धर्मतत्त्व, ३.मार्गतत्त्व, ४.साधुतत्त्व (गुरुतत्त्व) और ५.तत्त्व-तत्त्व (जीवादि नव तत्त्व)। इन पांच तत्त्वों के श्रद्धान से सम्यग्दर्शन पुष्ट होता है। इन पांच तत्त्वों का ही इसमें विवेचन है। मूल के साथ दो संस्कृत टीकाएँ दी गई हैं। गुजराती भूमिका के साथ आठ उपयोगी परिशिष्ट हैं १.गुजराती भाषा में भावानुवाद सहित मूलग्रन्थ, २.विभिन्न ग्रन्थों में समुपलब्ध गाथा सूची, ३.गृहीतान्यग्रन्थ-गाथावृत्ति सूची ४.पूर्वप्रकाशन की कुछ विशिष्ट अशुद्धियों का शुद्धि-पत्र, ५.उपयोगी ग्रन्थरत्नों की सूची, ६.सदृशप्राय वृत्तियों की सूची ७.अन्तर्गत कथाओं की सूची तथा गाथाओं की अकारादि क्रम से सूची। यह ग्रन्थ सब प्रकार से उपयोगी है।
प्रो. सुदर्शन लाल जैन
२. जैन एवं वैदिक परम्परा में द्रौपदी : एक तुलनात्मक अध्ययन लेखिका- डॉ०(श्रीमती) शीला सिंह, ग्रन्थमाला संपादक- प्रो. सुदर्शन लाल जैन, प्रकाशक-पार्श्वनाथ विद्यापीठ, प्रकाशन वर्ष २०११ई., मूल्य ४५०रुपये। 'जैन एवं वैदिक परम्परा में द्रौपदी : एक तुलनात्मक अध्ययन' शीर्षक कृति डॉ०(श्रीमती) शीला सिंह का उपर्युक्त विषय पर लिखा गया पी-एच०डी० उपाधि (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय) हेतु शोध-प्रबन्ध है। डॉ० शीला सिंह पार्श्वनाथ विद्यापीठ की न्यूकेम शोधछात्रा रही हैं और उन्होंने डॉ० अशोक कुमार सिंह एसोसिएट प्रोफेसर के निर्देशन में शोध किया था।