Book Title: Sramana 2013 04
Author(s): Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 39
________________ रत्नाकरावतारिका में शब्दार्थ - सम्बन्ध विमर्श डॉ. अर्चना रानी दूबे [वादिदेवसूरि ने प्रमाणनयतत्त्वालोक पर स्याद्वादरत्नाकर नामक अत्यन्त वृहद् एवं क्लिष्ट स्वोपज्ञ टीका रची है । रत्नप्रभसूरि ने अपने गुरु की इस विशालकाय टीका पर रत्नाकरावतारिका नामक सरल टीका लिखी है। 'रत्नाकरावतारिका' जैन न्याय व जैन-दर्शन का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है | आचार्य रत्नप्रभसूरि ने अपने गुरु 'वादिदेवसूरि’ के 'प्रमाणनयतत्त्वालोक' की वृहद् एवं क्लिष्ट टीका 'स्याद्वादरत्नाकर' में प्रवेश करने हेतु ‘रत्नाकरावतारिका' की रचना की। इसके रचयिता 'रत्नप्रभसूरि' की गणना उच्च कोटि के जैन विद्वानों में की जाती है। शब्द और अर्थ में मीमांसक तादात्म्य सम्बन्ध, नैयायिक तदुत्पत्ति सम्बन्ध, जैन वाच्य - वाचक सम्बन्ध और बौद्ध कोई सम्बन्ध नहीं मानते। रत्नप्रभसूरि ने जैनेतर मतों की समीक्षा करते हुए जैन मत की स्थापना की है। प्रस्तुत पत्र का उद्देश्य ‘रत्नाकरावतारिका' में प्रतिपादित शब्दार्थ सम्बन्ध विमर्श को प्रस्तुत करना है।] - सम्पादक 'रत्नाकरावतारिका' का रचनाकाल लगभग १२वीं शताब्दी का है। भारतीय दार्शनिक चिन्तन में पाँचवी शताब्दी से लेकर पन्द्रहवीं शताब्दी का काल मुख्य रूप से खण्डन-मण्डन का ही रहा है। जहाँ तक रत्नप्रभसूरि का प्रश्न है, वे भी अपने परिवेश से अप्रभावित न रह सके तथा तत्कालीन परिवेश के अनुरूप रत्नाकरावतारिका की रचना की। शब्दार्थ- स - सम्बन्ध की सम्पूर्ण चर्चा में जिस प्रकार से उत्तर- प्रत्युत्तर की शृंखला हमें दिखाई देती है वह सम्भवतः उस युग की ही देन थी । यह सर्वमान्य तथ्य है कि शब्द का प्रयोग अर्थबोध के लिए ही होता है। सभी सार्थक शब्द अपने उस अर्थ (वाच्यार्थ ) का बोध कराते हैं जिसके साथ वे सम्बन्धित होते हैं। इस प्रकार शब्द अपने वाच्यार्थ के संकेतक हैं। किन्तु यह वाच्यार्थ क्या है? वस्तु है या तात्पर्य है, यह विचारणीय है। पाश्चात्य विचारक बर्ट्रेण्ड रसेल ने अपने ग्रन्थ ‘एन इन्क्वायरी इण्टू मीनिंग एण्ड ट्रुथ' में इस पर गम्भीरतापूर्वक विचार किया है कि अर्थ से हम क्या समझते हैं। भारतीय चिन्तन में एक ओर अर्थ से वाच्य वस्तु को समझा जाता है तो दूसरी ओर अर्थ से हम कथन के तात्पर्य को ग्रहण करते हैं। अतः अर्थ शब्द भारतीय परम्परा में वस्तु अर्थात् वाच्य विषय और तात्पर्य दोनों के लिए ही प्रयुक्त हुआ है। अर्थ शब्द के अर्थ की अस्पष्टता के कारण ही शब्द और

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