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30 : श्रमण, वर्ष 64, अंक 2 / अप्रैल-जून 2013 के गोम्मटसार पर टीका), पद्मसुन्दर (१५५०ई.) रचित प्रमाणसुन्दर, सुमतिकीर्ति (१५६४ई.) की नेमिचन्द्रसिद्धान्तचक्रवर्ती के गोम्मटसार पर टीका, अहोबलसूरि (१५६५ई.) लिखित रामानुज के वेदान्तसार पर टीका, हर्षकुलगणि रचित (१५७०ई.) उदयधर्मगणि के वाक्यप्रकाश पर टीका, धर्मसागर (१५७२ई.) रचित नयचक्र और सर्वज्ञशतक और गुणभद्र आचार्य (१५७५ई.) आदि त्रिभंगीसार उपलब्ध होते हैं। सत्रहवीं शती में रचे गये दार्शनिक ग्रन्थ इस प्रकार हैं- धर्मभूषणयति (१६१०ई.) कृत न्यायदीपिका, सूरचन्द्र उपाध्याय (१६२२ई.) जैनतत्त्वसार, समयसुन्दर (१६४१ई.) सारसप्तभंगीतरंगिणी, विनयविजय (१६५०ई.) रचित नयकर्णिका, उपाध्याय यशोविजय रचित अनेकान्तव्यवस्थाप्रकरण, द्रव्यगुणपर्यायसार, स्वोपज्ञवृत्ति तात्पर्यसंग्रह सहित जैनतर्कभाषा, जैनन्यायखण्डनखाद्य, ज्ञानसार, ज्ञानबिन्दु, ज्ञानार्णव, नयचक्र, नयदीप, नयरहस्य, स्वोपज्ञवृत्ति न्यायामृततरंगिणी सहित नयोपदेश, न्यायबिन्दु, न्यायालोक, ज्ञानार्णव, वादसंग्रह, स्याद्वादमंजूषा वृत्ति और स्याद्वादकल्पलतावृत्ति (शास्त्रवार्तासमुच्चयहरिभद्र), बालबोध या विवरण (तत्त्वार्थसूत्र-टीका), लावण्यविजय (१६८७ई.) कृत द्रव्यसप्ततिका और ब्रह्मदेव (१६९०ई.) रचित द्रव्यसंग्रह (नेमिचन्द्रसिद्धान्तचक्रवर्ती)वृत्ति और मतिरत्नसूरि लिखित नवतत्त्वप्रकरण-स्तबक। अठारहवीं शती में रचे गये दार्शनिक ग्रन्थ इस प्रकार हैं- ढढा (१७००ई.) रचित पंचसंग्रह, देवचन्द्र रचित ज्ञानमंजरीटीका (ज्ञानसार, यशोविजय), नयचक्र और विचारसार, मैत्रीरत्नसूरि (१७४७ई.) का नवतत्त्वकरण-स्तबक, दामोदर (१७५०ई.) लिखित नयविवेक (भवनाथ)-अलंकार, देवेन्द्रकीर्ति (१७५०ई.) रचित समयसारआत्मख्याति (अमृतचन्द्रसूरि), हंसराज (१७५०ई.) लिखित द्रव्यसंग्रह (नेमिचन्द्र) पर वृत्ति, रामचन्द्र (१७५०ई.) लिखित द्रव्यसंग्रह (नेमिचन्द्र) पर वृत्ति, क्षमाकल्याणगणि (१७७२ई.) लिखित सुबोधिनी (जीवविचारप्रकरण-शान्तिसूरि) और फक्किका (तर्कसंग्रहदीपिका-अन्नमभट्ट), जिनलाभसूरि (१७८०ई.) रचित आत्माबोध अथवा आत्म-प्रबोध। उन्नीसवीं शती में रचे गये दार्शनिक ग्रन्थ-भोजकवि (१८२०ई.) स्वोपज्ञ वृत्ति सहित द्रव्यानुयोगर्कणा, अभिनव चारुकीर्ति (१८४५ई.) प्रमेयरत्नालंकार (परीक्षामुखमाणिक्यनन्दी पर टीका) एवं प्रमेयरत्नालंकार-अर्थप्रकाशिका। बीसवीं शती में रचे गये दार्शनिक ग्रन्थ-हेमहंसगणि (१९११ई.) रचित स्वोपज्ञ न्यास सहित न्यायसंग्रह और स्वोपज्ञ न्यास सहित न्यायार्थमंजूषा, न्यायविजय (१९१३ई.) लिखित 'अध्यात्मतत्त्वालोक, न्यायकुसुमांजलि प्रकरण, न्यायतीर्थ प्रकरण और