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94 : श्रमण, वर्ष 64, अंक 2 / अप्रैल-जून 2013 पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी, २१ दिवसीय प्राकृत भाषा एवं साहित्य शिक्षण कार्यशाला:पू. मुनिराज श्री प्रशमरति विजय जी म.सा. की प्रेरणा एवं वाराणसी के प्रसिद्ध उद्योगपति एवं सुश्रावक श्रीधनपतराज भंसाली, पार्श्वनाथ विद्यापीठ के कोषाध्यक्ष श्री सतीश कुमार लोढा और देवर्द्धि परिषद, नागपुर के आर्थिक सहयोग से पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वराणसी द्वारा १२ मई से २ जून, २०१३ तक प्राकृत भाषा एवं साहित्य शिक्षण हेतु एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। इसमें भाग लेने वाले प्रतिभागियों की संख्या ५८ थी। इनमें डॉ. दीप्ति रंजन पटनायक (का.हि.वि.वि.) एवं डॉ. संतोष कुमार मिश्रा(आसाम) एसोसिएट प्रोफेसर, डॉ. अर्चना श्रीवास्तव (म.गांधी काशी विद्यापीठ), डॉ. चन्द्रमौलीश्वर पाण्डेय (पू.वि.वि.जौनपुर), डॉ. उमाशंकर राय (डॉ. राम मनोहर लोहिया, फैजाबाद), डॉ. अश्विन कुमार तिवारी, डॉ. राजबहादुर यादव (सहायक प्रोफेसर), डॉ. संगीता सिंह एवं डॉ. अर्चना कुमारी (पोस्ट डॉक्टरल फेलो, दर्शन विभाग), डॉ. अनुराधा पाठक, दर्शन विभाग, डॉ. सुशील कुमार सिंह, डॉ. संगीता सिंह (इतिहास विभाग), पी.एच.डी., एवं शेष सभी शोध छात्र थे। इस कार्यशला में अध्यापन कार्य पू. प्रशमरति विजय जी म. सा. (१६ कक्षायें), डॉ. दीनानाथ शर्मा एसोसिएट प्रोफेसर, गुजरात विश्वविद्यालय (४८ कक्षायें) एवं डॉ. अशोक कुमार सिंह, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी (३२ कक्षायें) ने किया। कार्यशाला में लगभग १०० कक्षाएं एवं चार विशेष व्याख्यान- 'वैदिक संस्कृत पर प्राकृत का प्रभाव' तथा 'अर्धमागधी आगम साहित्य', डॉ. अशोक कुमार सिंह, 'प्राकृत अभिलेख' प्रो. महेश्वरी प्रसाद और ‘कातन्त्र व्याकरण' प्रो. जानकी प्रसाद द्विवेदी के विशेष व्याख्यान हुए। कार्यशाला में आचार्य हेमचन्द्र के प्राकृत व्याकरण के सूत्र एवं उनके उदाहरण में आए शब्दों के व्याकरणिक विश्लेषण के साथ, अर्धमागधी आगम- उत्तराध्ययन सूत्र (गाथा) और उपासकदशा (गद्य), महाराष्ट्रीपउमचरिय (विमलसूरिकृत) और अभिज्ञान शाकुन्तलम् तथा शौरसेनी- प्रवचनसार (आचार्य कुन्दकुन्द) से चयनित अंशो की संस्कृत छाया, हिन्दी अर्थ एवं शब्दों का व्याकरणिक विश्लेषण सहित अध्ययन कराया गया। हेमचन्द्र के व्याकरण से सन्धि, समास, शब्द रूप, धातु रूप, ध्वनिपरिवर्तन, स्वर पविर्तन, असंयुक्त व्यञ्जन पविर्तन, संयुक्त व्यञ्जन परिवर्तन आदि का अध्ययन कराया गया। मूल्यांकन हेतु सप्ताह के अन्त में पढ़ाये गये गद्यांशों एवं पद्यांशों की लिखित परीक्षा ली गयी। अंत में लिखित एवं मौखिक परीक्षा ली गई।