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पार्श्वनाथ विद्यापीठ समाचार
उपाध्यायरत्न ज्ञानसागर महाराज के रजत दीक्षा जयंती वर्ष के उपलक्ष्य में संगोष्ठी (१४/०४/२०१३):जैन मुनि उपाध्यायरत्न ज्ञानसागर महाराज की रजत दीक्षा जयंती वर्ष के उपलक्ष्य में श्रुत संवर्धन, मेरठ के सहयोग से करौंदी स्थित पार्श्वनाथ विद्यापीठ में 'भारतीय संस्कृति के विकास में पुस्तकालयों का योगदान' विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का १४ अप्रैल २०१३ को आयोजन हुआ। उद्घाटन सत्र के अध्यक्ष पद से बोलते हुए भारत सरकार के पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त डा. ओ. पी. केजरीवाल ने कहा कि पुस्तकालय संस्कृति का जनक है। नालन्दा पुस्तकालय का उदाहरण देते हुए कहा कि नालन्दा के विनाश के बाद सभ्यता का अन्धकार युग आ गया। उन्होंने कहा कि तकनीकी विकास के साथ पुस्तकालयों के स्वरूप में भी परिवर्तन की आवश्यकता है। आज की परिस्थिति में जिस पुस्तक का प्रकाशनाधिकार समाप्त हो चुका है उस पुस्तक की पूरी की पूरी छाया प्रति करने की अनुमति होनी चाहिये। संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि पद से बोलते हुए प्रख्यात शिक्षाशास्त्री एवं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय कार्यपरिषद के पूर्व सदस्य प्रो एस.बी.सिंह ने प्राचीन, प्रसिद्ध एवं समृद्ध पुस्तकालयों का उदाहरण देते हुए उनके महत्त्व पर प्रकाश डाला। आपने राजस्थान के जैन ग्रन्थों का उदाहरण देते हुए उन्हें भारतीय संस्कृति के विकास में अहम भूमिका निभाने वाला बताया। प्रो. कमलेश कुमार जैन, प्रो. अशोक कुमार जैन, श्री ओम प्रकाश सिंह, शोभित मिश्रा, डॉ. अरूपा मजुमदार, डॉ. हीरककांति चक्रवर्ती, श्री राम कुमार दांगी, डॉ. विवेकानन्द जैन, बृजेश कुमार गर्ग, विजेता मालवीय,आदि कुल मिलाकर देशभर के लगभग १७ प्रतिभागियों ने इस संगोष्ठी में अपने शोधपत्र का वाचन किया और लगभग १३५ प्रतिभागियों ने भाग लिया। कार्यक्रम के संयोजक पुस्तकालयाध्यक्ष पार्श्वनाथ विद्यापीठ श्री ओम प्रकाश सिंह ने संगोष्ठी के बारे में जानकारी प्रदान की, संचालन डॉ. संजीव सर्राफ ने तथा अतिथियों का स्वागत डॉ. अशोक कुमार सिंह ने किया। पार्श्वनाथ विद्यापीठ का परिचय पार्श्वनाथ विद्यापीठ के एकेडमिक डीन डॉ. श्रीप्रकाश पाण्डेय ने दिया और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. राहुल कुमार सिंह ने किया। कार्यक्रम के सफल आयोजन के लिए सभी ने पार्श्वनाथ विद्यापीठ के मैनेजिंग कमेटी के प्रेसिडेण्ट डॉ. शुगन चन्द जैन के प्रयासों की भूरिभूरि प्रशंसा की।