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जैन दार्शनिक साहित्य : 29 रचित नवतत्त्वप्रकरण (देवगुप्त)- टीका, सकलकीर्तिभट्टारक (११२५ई.) लिखित तत्त्वार्थसूत्र -टीका एवं जीवानुशासन, कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र (११५०ई.) कृत प्रमाणमीमांसा, जयसेन (११५०ई.) कृत पंचास्तिकायसार (कुन्दकुन्द)- वृत्ति, चक्रेश्वरसूरि (११५०ई.) रचित बन्ध-शतक (शिवशर्मसूरि)- वृत्ति, शान्तिसूरि या शान्त्याचार्य (११५०ई.) रचित टीका जैनतर्कवार्त्तिक (न्यायावतार), पद्मप्रभमलधारिदेव रचित नियमसार - वृत्ति, नरचन्द्र उपाध्याय (११७७ई.) रचित ज्ञानचतुर्विशतिका, मलधारि हेमचन्द्र (११८०ई.) रचित विशेषावश्यकभाष्य (जिनभद्रगणि) पर टीका, रत्नप्रभसूरि (११८१ई.) रचित प्रमाणनयतत्त्वालोक (वादिदेवसूरि) पर रत्नाकरावतारिका टीका आदि। तेरहवीं शती के दार्शनिक ग्रन्थों में जिनपति अथवा जिनदासूरि (१२०८ई.) लिखित पंचलिंगी (जिनेश्वर)- टीका, नरचन्द्रसूरि (१२१०ई.) कृत श्रीधररचितन्यायकन्दलीटीका, शान्तिसूरि (१२४०ई.) रचित सावचूरि जीवविचारप्रकरण, देवभद्र (१२४०ई.) का न्यायावतार - वृत्ति पर टिप्पण, उदयप्रभसूरि (१२४३ई.) लिखित बन्धशतक (शिवशर्मसूरि) पर टीका, लघु समन्तभद्र (१२५०ई.) लिखित अष्टसाहस्री (विद्यानन्द) टीका, भावसेन (१२५०ई.) कृत मुक्तिविचार, प्रमाणप्रमेय और भुक्तिविचार, देवभद्र (१२५१ई.) रचित प्रमाणप्रकाश, मलयगिरि (१२८०ई.) कृत शिवशर्म की कर्मप्रकृति
और चन्द्रर्षिमहत्तर की सप्ततिका पर टीकायें और अभयचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती (१२९०ई.) लिखित नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती के गोम्मटसार पर टीका, विद्यानन्द की अष्टसाहस्री पर टिप्पण और अकलंक के लघीयस्त्रयी पर तात्पर्य वृत्ति । चौदहवीं शती के दार्शनिक ग्रन्थों में प्रभाचन्द्र (१३१०ई.) लिखित समयसार पर टीका, सोमतिलकसूरि (१३३८ई.) लिखित हरिभद्रसूरि के षड्दर्शनसमुच्चय पर लघुवृत्ति, मलधारि राजशेखरसूरि (१३५०ई.) रचित षड्दर्शनसमुच्चय, जयसिंहसूरि (१३६५ई.) लिखित भासर्वज्ञ के न्यायसार पर न्यायतात्पर्यदीपिका, गुणाकर या गुणसुन्दर (१३७०ई.) लिखित हरिभद्रसूरि के षड्दर्शनसमुच्चय पर वृत्ति, मेरुतुंगसूरि (१३९५ई.) रचित षड्दर्शननिर्णय, सोमसुन्दर रचित (१३९५ई.) नवतत्त्व और मुनिसुन्दर (१३९८ई.) रचित पंचदर्शनस्वरूप। पन्द्रहवीं शती के दार्शनिक ग्रन्थों में गुणरत्नसूरि (१४१२ई.) द्वारा शशधर कृत न्यायसिद्धान्तदीप पर भाष्य और मुनीश्वर (१४३०ई.) लिखित प्रमाणसार। सोलहवीं शती के दार्शनिक ग्रन्थों में ज्ञानभूषण (१५०६ई.) रचित आत्मसंबोधन और ज्ञानतरंगिणी, नेमिचन्द्र (१५३०ई.) की जीवतत्वप्रदीपिका (नेमिचन्द्रसिद्धान्तचक्रवर्ती