Book Title: Sramana 2013 04
Author(s): Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 34
________________ जैन दार्शनिक साहित्य : 27 प्रश्न है सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग, व्याख्याप्रज्ञप्ति, औपपातिक, राजप्रश्नीय, जीवाजीवाभिगम, प्रज्ञापना, उत्तराध्ययन, नन्दी और अनुयोगद्वार में मुख्यतः यह प्राप्त होता है। ज्ञान-मीमांसा का प्रतिपादन उक्त ग्रन्थों के अतिरिक्त किसी न किसी रूप में अंग ग्रन्थ सूर्यप्रज्ञप्ति, निरयावलिका, कल्पावतंसिका, पुष्पिका, पुष्पचूलिका, वृष्णिदशा, मूलसूत्र दशवैकालिक, छेदसूत्र दशाश्रुतस्कन्ध एवं आवश्यकसूत्र में भी प्राप्त होता है। प्राकृत भाषा निबद्ध स्वतन्त्र दार्शनिक ग्रन्थों में सर्वप्रथम दिगम्बर आचार्य कुन्दकुन्द (ईसा की द्वितीय शताब्दी) के ग्रन्थ आते हैं- अष्टपाहुड, समयसार, नियमसार, पंचास्तिकायसार, प्रवचनसार और रयणसार । सर्वप्रथम संस्कृत भाषा में निबद्ध (तृतीय शताब्दी) ग्रन्थ उमास्वाति (दिगम्बर उमास्वामि) विरचित स्वोपज्ञभाष्य सहित तत्त्ववार्थाधिगमसूत्र, तथा प्रशमरतिप्रकरण, दिगम्बर आचार्य समन्तभद्र (चौथीपांचवीं शती) विरचित सन्मतितर्कप्रकरण (प्राकृत) और न्यायावतार (संस्कृत), मल्लवादी (पांचवीं शती) का द्वादशारनयचक्र (प्राकृत), पूज्यपाद - देवनन्दी (पांचवी शती) की सर्वार्थसिद्धि (तत्त्वार्थ पर टीका) और सिंहसूरिगणि (छठीं शती) कृत द्वादशारनयचक्र टीका न्यायागमानुसारी छठीं शती की दार्शनिक रचनायें हैं। सातवीं शती और उसके बाद की दार्शनिक रचनाओं में याकिनिसून आचार्य हरिभद्र रचित अनेकान्तजयपताका, अनेकान्तवादप्रवेश, सर्वज्ञसिद्धि, अनेकान्तसिद्धि, शास्त्रवार्तासमुच्चय, षड्दर्शनसमुच्चय, तत्त्वप्रकाश, लोकतत्त्ववादप्रवेश, अनेकान्तप्रघट्ट, तत्त्वार्थ पर लघुवृत्ति, द्वादशारनयचक्र पर वृत्ति और धर्मोत्तर के न्यायबिन्दु - टीका पर टिप्पण, भट्ट अकलंक रचित अष्टशती (आप्तमीमांसा पर टीका), लघीयस्त्रय, न्यायविनिश्चय, न्यायचूलिका, सिद्धिविनिश्चय, प्रमाणलक्षण, प्रमाणसंग्रह, प्रमाणरत्नप्रदीप स्वरूपसम्बोधन, अष्टशती (आप्तमीमांसा पर टीका) और राजवार्त्तिक (तत्त्वार्थ पर टीका), चिरन्तनाचार्य (७१५ई०) लिखित तत्त्वार्थ-टिप्पण, वादीभसिंह (सातवींआठवीं शती) रचित नवपदार्थनिश्चय, स्याद्वादसिद्धि और वादन्याय और कुमारनन्दि रचित वादन्याय आदि हैं। नवीं शती में रचित दार्शनिक कृतियों में गुणधर के कषाय प्राभृत पर जयसेन (८३७ई.) रचित जयधवला टीका, हरिभद्रसूरि ( ८५० ई.) रचित अष्टसाहस्त्रिकाप्रज्ञापारमितासूत्र पर टीका अलोक, अभिसमयालंकार पर टीका अलोक, अभिसमयालंकार पर टीका सुत्तार्थ, दिङ्नाग के न्यायमुख पर वृत्ति, पंचसंग्रह और संचयागाथापंजिका सुबोधिनी हैं। नवी शती में ही दिगम्बर आचार्य विद्यानन्द रचित आप्तपरीक्षा और स्वोपज्ञ वृत्ति, अलंकृति, अष्टसाहस्री (आप्तमीमांसा की टीका अष्टशती पर वृत्ति), युक्त्यनुशासन पर टीका और गुणभद्र (८७०ई०) रचित आत्मानुशासन आदि रचनायें हैं। ,

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