Book Title: Sramana 2013 04
Author(s): Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 40
________________ रत्नाकरावतारिका में शब्दार्थ-.... : 33 अर्थ के सम्बन्ध को लेकर अनेक मतों का निर्माण हुआ है। शब्द के अर्थ की चर्चा करते हुए भर्तृहरि कहते हैं, “जिस शब्द के उच्चारण से जिस अर्थ की प्रतीति होती है वह उसका अर्थ है।" न्यायमंजरीकार अर्थ का लक्षण करते हैं, 'जिस शब्द से जिस अर्थ का संकेत किया जाता है अर्थात् जिस शब्द से जिस अर्थ की प्रतीति होती है वही उसका अर्थ है। इस प्रकार अर्थ से तात्पर्य वाच्य से है तथा शब्द की यही उपयोगिता है कि वह वाच्य-वस्तु का बोध कराए। शब्द अपने वाच्यार्थ के संकेतक हैं। वे कैसे यह संकेत करते हैं, यह प्रश्न अलग है, परन्तु वाच्यार्थ शब्द के माध्यम से प्रकट होता है इसलिए शब्द और वाच्यार्थ के मध्य सम्बन्ध निश्चित है। प्रश्न यह है कि यह सम्बन्ध किस प्रकार का है? उस सम्बन्ध का स्वरूप क्या है? वैयाकरणों के मतानुसार शब्द और अर्थ के मध्य तादात्म्य सम्बन्ध है। मीमांसक, वेदान्ती तथा तांत्रिक भी तादात्म्यवाद के समर्थक हैं। बौद्ध शब्द और अर्थ के मध्य कोई सम्बन्ध नहीं मानते हैं। सांख्य और जैन दार्शनिक वाच्य-वाचक सम्बन्ध मानते हैं। जैनों की यह मान्यता है कि शब्द में प्रतिपादक शक्ति है, जिससे वे अर्थ का प्रतिपादन करते हैं। डॉ० महेन्द्र कुमार जैन शब्दार्थ सम्बन्ध के विषय में अपने विचार प्रस्तुत करते हुए लिखते हैं, "जिस प्रकार ज्ञान और ज्ञेय में ज्ञापक और ज्ञाप्त शक्ति स्वाभाविक है उसी प्रकार शब्द और अर्थ में प्रतिपादक और प्रतिपाद्य शक्ति स्वाभाविक है।"३ जैन दार्शनिक शब्द और अर्थ के मध्य वाच्य-वाचक सम्बन्ध मानते हैं। शब्द वाचक है तथा अर्थ वाच्य है। शब्द की अलग सत्ता है और अर्थ की अलग सत्ता है। उनके मध्य तादात्म्य न होकर वाच्य-वाचक भाव है। एक दूसरे से सम्बन्धित होने का तात्पर्य यह नहीं कि शब्द वस्तु रूप हो, वह तो संकेतक मात्र है। इस प्रकार वाच्य-वाचक भाव के समर्थक जैन दार्शनिक तादात्म्यवादी वैयाकरणों, मीमांसकों तथा बौद्ध और नैयायिकों का खण्डन करते हैं। 'रत्नाकरावतारिका' का प्रथम सूत्र 'प्रमाणनयतत्त्वव्यवस्थापनार्थमिदमुपक्रम्यते' है। यह आदि वाक्य ग्रन्थ के मुख्य प्रयोजन को स्पष्ट करता है, किन्तु आदि वाक्य का यह प्रयोजन शब्दार्थ सम्बन्ध के आधार पर ही होगा। अत: प्रस्तुत कृति में सर्वप्रथम शब्दार्थ-सम्बन्ध को लेकर विभिन्न दार्शनिकों द्वारा जो विभिन्न प्रकार की शंकाएँ प्रस्तुत की गई हैं, उनके समाधान का प्रयत्न किया जाता है।

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