Book Title: Sramana 2013 04
Author(s): Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 19
________________ 12 : श्रमण, वर्ष 64, अंक 2 / अप्रैल-जून 2013 उपाय भी यही बताया गया है, जो पुत्र अपने माता-पिता को धर्म-पथ पर चलाता है वह मातृ-पितृ-ऋण से मुक्त हो जाता है। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि कृष्ण वासुदेव वास्तव में प्रजाहितैषी थे। (५) मातृभक्त- कृष्ण वासुदेव माता-पिता का अत्यन्त आदर करते थे। वे त्रिखण्ड के अधिपति होकर भी प्रतिदिन माता को प्रणाम करने के बाद ही अन्य कार्य किया करते थे। एक बार जब वे माता देवकी को वन्दन करने पहुंचे तो देखा कि माता चिन्तामग्न है। माँ की परेशानी का कारण था सात पुत्रों को जन्म देकर भी मैं कभी माँ के कर्तव्यों का पालन नहीं कर सकी अर्थात् एक भी पुत्र का लालन-पालन अपने हाथों से नहीं कर पायी। इस बात को जानने के तुरन्त बाद कृष्ण वासुदेव माँ को आश्वासन देते हुए कहते हैं- हे माते! आप भग्न-हृदया न हों, मैं ऐसा प्रयास करूंगा कि आपकी मनोकामना पूर्ण हो जाए और वे समाधान प्राप्त करके ही लौटते हैं। लौटकर माता को प्रसन्नता प्रदान करते हुए कहते हैं- हे माँ! आपकी इच्छानुरूप मेरा लघुभ्राता होगा। इस सूचना से माता देवकी को अत्यन्त प्रसन्नता होती है। इस प्रकार वे सोलह हजार राजाओं के राजा होकर भी माता की इच्छापूर्ति के लिए सर्वप्रथम प्रवृत्त होते थे, अत: वे सच्चे मातृभक्त थे। (६) न्याय पालक- कृष्ण वासुदेव सच्चे न्याय पालक थे। वे अन्याय को कदापि सहन नहीं करते थे। स्वयं न्याय के मार्ग पर चलना तथा औरों को भी प्रेरित करना उनकी पहचान थी। प्रस्तुत आगम में एक प्रसंग है ३- सोमिल ने प्रतिशोध वश कृष्ण के लघुभ्राता गजसुकुमाल मुनि की हत्या कर दी। इसका पता चलने पर उनका क्रोधित होना स्वाभाविक था। वे सोमिल को मृत्य दण्ड दे पाते उससे पूर्व ही भय के कारण हृदय-गति रुकने से सोमिल की मृत्यु हो जाती है। कृष्ण वासुदेव सेवकों को आदेश देते हैं कि इस अधर्मात्मा के पैरों में रस्सी बांधकर खींचते हुए पूरे नगर में घमाओं और घोषणा करो, जो कोई भी व्यक्ति किसी मुनि आदि के साथ ऐसा व्यवहार करेगा उसे इसी तरह से मृत्यदण्ड दिया जाएगा फिर उस सम्पूर्ण मार्ग को जल से प्रक्षालित करो ताकि इसके गन्दे परमाणु खत्म हो जाएँ।४४ इस प्रसंग में वे एक उत्कृष्ट न्यायी राजा के रूप में सामने आते हैं। (७) कषायविजेता- कृष्ण वासुदेव की एक विशेषता यह भी थी कि वे कषायविजेता थे। जब पाण्डुमथुरा की ओर जाते समय कोशाम्रवन में अनजाने में ही जराकुमार के हाथों घायल होकर मरणासन्न हो जाते हैं, तब वे जराकुमार को कहते हैं- “बलराम ने यदि तुम्हें देख लिया तो वे तुम्हें जीवित नहीं छोड़ेंगे अत:

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