Book Title: Sramana 2013 04
Author(s): Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 23
________________ 16 : श्रमण, वर्ष 64, अंक 2 / अप्रैल-जून 2013 ३७. इमीसे णं भंते! बारवईए नयरीए किंमूलाए विणासे भविस्सइ एवं खलु कण्हा इमीसे बारवईए सुरग्गिदीवायणमूलाए विणासे भविस्सइ। -, अंतगडदसाओ, ५/९, १०,- अंगसुत्ताणि ३, पृ. ५७३। अहं णं भंते! इतो कालमासे कालं किच्चा कहिं गमिस्सामि? कहिं उववज्जिस्सामि? एवं खलु कण्हा! तुमं बारवईए नयरीए सुरग्गिदीवायणकोवनिदड्वाए अम्मापिइनियग-विप्पहूणे रामेण बलदेवेण सद्धिं दाहिणवेयालिं अभिमुहे जुहिठिल्लपामोक्खाणं पंचण्हं पंडवाणं पंडुरायपुत्ताणं पासं पंडुमहुरं संपत्थिए कोसंबवणकाणणे नग्गोहवरपायवस्स पीयवत्थ-पच्छाइय-सरीरे जराकुमारेणं तिक्खेणं कोदंडविप्पमुक्केणं उसुणा वामे पादे विद्धे समाणे कालमासे कालं किच्चा तच्चाए वालुयप्पभाए पुढवीए उज्जलिए नरए नेरइयत्ताए उववज्जिहिसि।- , अंतगडदसाओ, ५/१५,१६, वही, पृ. ५७४। ३९. मा णं तुमं देवाणुप्पिया! ओहयणसंकप्पे जाव झियाह। एवं खलु तुमं देवाणुप्पिया! तच्चाओं पुढवीओ...उव्वट्टित्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे आगमेसाए उस्सप्पिणीए पंडेसु जणवएसु सयदुवारे नगरे बारसमे अममे नामं अरहा भविस्ससि। तत्थ तुमं..... परिनिव्वाहिसि सव्वदुक्खाणं अंतं काहिसि।अंतगडदसाओ, ५/१८, वही, पृ. ५७४। तते णं से कण्हे वासुदेवे बारवतीए नयरीए मज्झमज्झेणं णिग्गच्छमाणे एकं पुरिसं पासति, जुन्न-जरा-जज्जरिय देहं जाव किलंतं महति महालयाओ इट्टगरासीआ एंगमेगं इट्टगं गहाय-बहिया-रत्यापहातो-अंतोगिहं अणुप्पविसमाणं पासति। तए णं से कण्हे वासुदेव पुरिसस्स अणुकंपणट्ठयाए हत्थिखंधवरगते चेव एगं इट्टगं गेण्हति, गेण्हित्ता बहिया रत्थापहाओ अंतोगिहं अणुप्पवेसेति। तते णं.....अणुप्पवेसिए। -अन्तकृद्दशांगसूत्र, आ. आत्माराम जी म., पृ. १७४। ४१. एवं खलु देवाणुप्पिया! बारवतीए नयरीए नवजोयण वित्थिण्णाए जाव। देवलोगभूयाए, सुरग्गिदीवायणमूलए विणासं भविस्सइ। तं जो णं देवाणुप्पिया! इच्छइ बारवतीए नयरीए राया वा, जुवराया वा, ईसरे, तलवरे, माडंबिये, कोडुंबिये, इब्मे, सेट्ठि वा, देवी वा, कुमारो वा, कुमारी वा अरहतो अरिट्ठनेमिस्स अंतिए मुंडे जाव पव्वइत्तए, तंणं कण्हे वासुदवे विसज्जति। पच्छातुरस्सविय से अहापवित्तं वित्तिं अणुजाणइ, महया इड्डिसक्कारसमुदएण य से निक्खमणं करेइ। -अन्तकृद्दशांग सूत्र, वही, पृ. २४७। ४२. हरिणेगमेसिस्स अट्ठभभत्तं पाण्हछ, जाव अंजलिं कट्ट एवं वयासी इच्छामि णं देवाणुप्पिया सहोदरं कणीयसं भाउयं विदिण्णं। तत...वायासी होहिति णं अम्मो मम सहोदरे कणीयसे भाउए त्ति कट्ट देवतिदेविं ताहिं इट्ठाहिं जाव आसासेइ। -अन्तकृद्दशांगसूत्र, वही, पृ. १९७। ४०.

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