Book Title: Sramana 2013 04
Author(s): Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 14
________________ जैन अंग-आगम में वासुदेव..... : 7 इससे उनकी महत्ता न्यून नहीं होती अपितु मुख्यपात्र न होकर भी आगम के कतिपय अध्याय कृष्णमय प्रतीत होते हैं, यह उनके व्यक्तित्व की व्यापकता के कारण ही है। जैनागमों में भावी तीर्थंकर के रूप में उन्हें स्वीकार करके उन्हें सर्वश्रेष्ठ महत्ता प्रदान की गई है। २५ जैन ग्रंथों के अनुसार कृष्ण गुण-सम्पन्न और सदाचार-निष्ठ थे, अत्यन्त ओजस्वी, तेजस्वी, वर्चस्वी और यशस्वी महापुरुष थे। उन्हें ओघबली, अतिबली, महाबली अप्रतिहत और अपराजित कहा गया है। वे इतने बलशाली थे कि महारत्न वज्र को भी चुटकी से पीस डालते थे। २६ श्रीकृष्ण के बाह्य व्यक्तित्व का वर्णन करते हुए आचार्य देवेन्द्र मुनि जी लिखते हैं- " श्रीकृष्ण का शरीर मान, उन्मान और प्रमाण, पूरा, सुजात और सर्वांग सुन्दर था। वे लक्षणों, व्यंजनों और गुणों से युक्त थे। उनका शरीर दस धनुष लम्बा था। वे अत्यन्त दर्शनीय-कान्त, सौम्य, सुभग और प्रियदर्शी थे अर्थात् उनको देखकर बारबार देखने का मन होता था एवं वे अत्यन्त प्रिय लगते थे। वे प्रगल्भ, विनयी और धीर थे। सुखशील होने पर भी उनके पास आलस्य फटकता नहीं था। उनकी वाणी गम्भीर, मधुर और प्रीतिपूर्ण थी। उनका निनाद क्रौंच पक्षी के घोष, शरद् ऋतु की मेघध्वनि और दुन्दुभि की तरह मधुर व गम्भीर था। वे सत्यवादी थे। उनकी चाल श्रेष्ठ गजेन्द्र की तरह ललित थी उनके तन पर पीले रंग का कौशेय वस्त्र शोभित होता था। उनके मुकुट में उत्तम धवल, शुक्ल, निर्मल कौस्तुभ मणि लगी रहती थी। उनके कान में कुण्डल, वक्ष में एकावली हार तथा श्रीवत्स का चिह्न अंकित था। वे दुर्धर धनुर्धर थे। उनके धनुष की टंकार बड़ी ही उद्घोषणकर होती थी। वे शंख, चक्र, गदा, शक्ति और नन्दक धारण करते थे तथा ऊंची गरुड़ ध्वजा के धारक थे इत्यादि । अंग साहित्य में उपलब्ध श्रीकृष्ण से सम्बन्धित तथ्य को इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है (१) स्थानांग सूत्र - स्थानांग सूत्र तृतीय अंग - आगम है, इसमें पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं- उत्तम पुरुष, मध्यम पुरुष और जघन्य पुरुष । इनमें से उत्तम पुरुष के पुनः तीन भेद किए गये हैं- धर्मपुरुष (अर्हत्), भोगपुरुष (चक्रवर्ती) और कर्मपुरुष (वासुदेव)। चूंकि कृष्ण वासुदेव हैं अतः जैनागमों में उनकी गणना उत्तम कर्मपुरुष के रूप में हुई है। स्थानांगसूत्र में ही ऋद्धिमान अर्थात् वैभवशाली मनुष्य पाँच प्रकार के बताए गए हैं जैसे- (१) अर्हत्, (२) चक्रवर्ती (३) बलदेव, (४) वासुदेव और (५) अणगार। इस प्रकार वासुदेव श्रीकृष्ण की गणना ऋद्धिमान् पुरुषों में की गई है। स्थानांगसूत्र के अष्टम स्थान में बताया गया है

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