Book Title: Sramana 2013 04
Author(s): Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 12
________________ जैन अंग-आगम में वासुदेव.... : 5 के साथ जो उल्लेख प्राप्त होता है उससे उनके जीवन की व्यापकता को सहज ही अनुमानित किया जा सकता है। यहाँ ध्यातव्य है कि कृष्ण के जीवन का जो स्वरूप हमें वेद-मूलक साहित्य में मिलता है, वह जैन साहित्य में प्राय: नहीं है। वेद-मूलक साहित्य में जहाँ उनकी बाल्यावस्था एवं युवावस्था का उसमें भी विशेषकर महाभारत तक का जीवनवृत्त अत्यन्त विस्तार के साथ विवेचित है वहीं जैन साहित्य में उनकी युवावस्था के बाद का जीवन-वृत्त विस्तृत रूपेण विवेचित हुआ है। जैन साहित्य में मिलने वाला युवावस्था से पूर्व का जीवन-वृत्त वस्तुत: वैदिक परम्परा के साहित्य से प्रभावित प्रतीत होता है। वैदिक परम्परा में वे वासुदेव इसलिए कहलाते हैं क्योंकि वे वसुदेव के पुत्र हैं, किन्तु जैन परम्परा में उनको वासुदेव कहने का कारण बिल्कुल भिन्न है। वहाँ पर वासुदेव पद शलाका महापुरुषों की श्रेणी में एक पदवी विशेष है। अत: जैन परम्परा में वे वासुदेव सुत होने से नहीं अपितु उस विशिष्ट पदवी के धारक होने से वासुदेव कहलाते हैं। अन्यथा जिनके पिता का नाम वसुदेव नहीं है, उनको वासुदेव नहीं कहा जाता। जैन परम्परा में इस अवसर्पिणी काल में नौ वासुदेव हुए हैं, जैसेतिविठू य दुविठू य, सयंभू पुरिसुत्तमे। पुरिससीहे तह पुरिसपुंडरीए, दत्त नारायणे कण्हे।। अर्थात् (१) त्रिपृष्ठ, (२) द्विपृष्ठ, (३) स्वयंभू, (४) पुरुषोत्तम, (५) पुरुषपुण्डरीक, (७) दत्त, (८) नारायण (लक्ष्मण) और (९) कृष्ण, ये नौ वासुदेव हुए हैं।१७ इन सभी वासुदेवों के पिताओं का नाम क्रमश: इस प्रकार है,-(१) प्रजापति, (२) ब्रह्म,(३) रुद्र, (४) सोम, (५) शिव, (६) महाशिव, (७) अग्निशिव, (८) दशरथ और (९) वसुदेव। यथापयावती य बंभे, रोद्दे सोमे सिवेति या महसिहे अग्गिसिहे, दसरहे नवमे य वसुदेवे॥१८ जैन परम्परा में श्रीकृष्ण एक शलाका पुरुष हैं। भगवान् अरिष्टनेमि ने उन्हें भावीतीर्थंकर कहा है 'आगमेसाए उस्सप्पिणीए पुंडेसु जणवदेसु सयदुवारे बारसमे अममे नामं अरहा भविस्ससि।१९ उनके सम्पूर्ण जीवन में किसी प्रकार की स्खलना दृष्टिगोचर नहीं होती। अहँत अरिष्टनेमि के सम्पर्क का ही यह प्रभाव मालूम पड़ता है कि कृष्ण के जीवन में अहिंसा आदि आध्यात्मिक मूल्यों की प्रतिष्ठा इतनी अधिक थी कि उनके

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