________________
जैन अंग-आगम में वासुदेव.... : 3 वासुदेव की भी जो प्रतिष्ठा उक्त परम्पराओं में दृष्टिगोचर होती है वह सत्ताबल के कारण नहीं अपितु न्याय-नीति सदाचार युक्त धर्मबल के कारण ही है। राजनैतिक क्षेत्र में धर्म का सफल प्रयोग करने वाले कृष्ण वासुदेव लोक धर्म के संस्थापक और अद्वितीय महापुरुष थे। वैदिक परम्परा में श्रीकृष्ण - वासुदेव श्रीकृष्ण के जीवन की घटनाओं एवं उनकी विशेषताओं का विस्तृत विवेचन हमें वैदिक साहित्य में प्रचुर परिमाण में उपलब्ध हो जाता है। ऋग्वेद में कृष्ण के तीन रूपों का उल्लेख मिलता है- (१) मंत्रद्रष्टा ऋषि (अष्टम एवं दशम मंडल), (२) अपत्यवाचा (प्रथम मंडल) और (३) कृष्णासुर के रूप में (अष्टममंडल)। ऐसा प्रतीत होता है कि उपर्युक्त तीनों रूपों का सम्बन्ध वासुदेव श्रीकृष्ण के साथ नहीं अपितु कृष्ण नामक किसी अन्य ऋषि आदि के साथ है क्योंकि वासुदेव श्रीकृष्ण वेदों से परवर्ती काल के महापुरुष हैं। ऐतरेय आरण्यक में कृष्ण हरित नाम का उल्लेख है, तैत्तिरीय आरण्यक में कृष्ण के देवत्व की चर्चा है। कौशीतकि ब्राह्मण तथा छान्दोग्योपनिषद् में आंगिरस कृष्ण का उल्लेख है।११ सम्भवत: यह नाम 'आंगिरस ऋषि के पास अध्ययन करने के कारण दिया गया होगा। महाभारत में कृष्ण को वासुदेव, विष्णु, नारायण, गोविन्द, देवकीनन्दन आदि नामों से अभिहित किया गया है।१२ अट्ठारह पुराणों में से लगभग दश पुराणों -गरुडपुराण, कूर्मपुराण, वायुपुराण, अग्निपुराण, नारदपुराण, पद्मपुराण, विष्णुपुराण, हरिवंशपुराण, देवी भागवत, श्रीमद्भागवत आदि में कृष्ण के दिव्य रूप का उल्लेख मिलता है। श्रीमद् भागवत तथा विष्णुपुराण में उन्हें ब्रह्मा और विष्णु सहित सभी देवताओं के लिए वन्दनीय बताया गया है।१३ । वैदिक परम्परा में विशेषतया कृष्ण की बाल्यावस्था तथा युवावस्था को लेकर विपुल साहित्य की रचना की गई है, जिसमें बाल्यावस्था के चमत्कार एवं युवावस्था की रास लीलाओं और वीरता को लेकर कवियों ने अपनी कमनीय कल्पना की तलिका से चित्ताकर्षक चित्रण किया है। इतना ही नहीं यह परम्परा उन्हें पूर्णावतार कहकर परिपूर्ण महापुरुष के रूप में स्वीकार करती है। श्रीमद्भागवत में उन्हें परम ब्रह्म कहकर सम्बोधित किया गया है।१४ भारतीय जनमानस में सर्वाधिक प्रभाव डालने वाले दो महापुरुष हैं- कृष्ण और राम, जिनकी कथाएँ आबाल-वृद्ध को आनन्द विभोर कर देती हैं। दोनों ही विष्णु