Book Title: Sramana 2013 04
Author(s): Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ जैन अंग-आगम में वासुदेव श्रीकृष्णः एक विवेचन प.पू.पद्म मुनि [पूज्य पद्म मुनि द्वारा लिखित इस लेख में जैन अंग साहित्य में उपलब्ध सामग्री के आधार पर वासुदेव श्रीकृष्ण का जीवन चरित प्रस्तुत किया गया है। लेख में यथास्थान आगम साहित्य से मूल भी उद्धृत किया गया है। भारतीय संस्कृति में श्रीकृष्ण ऐसे विरले महापुरुषों में हैं जिन्हें वैदिक, जैन और बौद्ध परम्परायें समान रूप से महत्त्व देती हैं। इस लेख में जैन अंग साहित्य के साथ-साथ वैदिक साहित्य में वर्णित श्रीकृष्ण चरित की मुख्य विशेषताओं को भी प्रस्तुत किया गया है। जैन अंगों में, स्थानांग, समवायांग, ज्ञाताधर्मकथा, अन्तकृद्दशांग तथा प्रश्नव्याकरण में कृष्णचरित्र क्रमबद्ध रूप में उपलब्ध न होकर विशृंखल रूप में मिलता है। यहां कृष्ण का उल्लेख प्राय: अन्य किसी आख्यान के विवेचन के प्रसंग में आया है। जैन परम्परा के प्राचीन साहित्य के आधार पर श्रीकृष्णचरित प्रस्तुत करने का यह प्रयास प्रशंसनीय है।] -सम्पादक भारतीय संस्कृति मूलत: दो संस्कृतियों में विभक्त है- (१) वैदिक संस्कृति और (२) श्रमण संस्कृति। इन दोनों में जहाँ वैदिक संस्कृति प्रवृत्ति मूलक है वहाँ श्रमण संस्कृति निवृत्ति प्रधान है। भारतीय सभ्यता एवं विकास का स्वरूप इन दोनों संस्कृतियों के ताने-बाने से बुना गया है। जीवनगत व्यवहारों का सम्यक् रूप से परिपालन करते हुए आध्यात्मिक विकास को प्रमुखता देना ही दोनों संस्कृतियों का मूल उद्देश्य रहा है और इस लक्ष्य की प्राप्ति में अपनी-अपनी परम्परा-सम्मत महापुरुषों की व्यक्तित्वगत विशिष्टताओं से मिलने वाली प्रेरणाओं का अत्यन्त महत्त्व रहा है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का समग्र जीवन जहाँ हमारे लिए आदर्श है वहीं भगवान बुद्ध की करुणा हमें नतमस्तक करा देती है। तीर्थंकर भगवान महावीर की साधना और संयम जहाँ हमारे लिए प्रेरणादायी और प्रकाशस्तम्भ है वहीं वासुदेव श्रीकृष्ण का जीवन हमें विविध सांसारिक कर्तव्यों का बोध करा देता है। आत्मिक-विकास की दृष्टि से इन महापुरुषों में प्राय: समानता होते हुए भी गुणों की प्रसिद्धि की दृष्टि से वासुदेव श्रीकृष्ण एक अलग ही क्षितिज पर दृष्टिगोचर होते हैं। सर्वविदित है कि प्रत्येक धर्म परम्परा अपने-अपने आराध्य महापुरुषों का गुणानुवाद अत्यन्त श्रद्धा-भक्ति से करती है, किन्तु कर्मयोगी वासुदेव श्रीकृष्ण ऐसे विरले

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 114