Book Title: Sramana 2013 04
Author(s): Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ जैन अंग-आगम में वासुदेव.... : 9 मैं कराऊंगा तथा उसी समय स्वयं ही थावच्चापुत्र से मिलने उसके घर पहुँचे। वे चाहते तो थावच्चापुत्र को अपने पास बुलवा सकते थे किन्तु वे धर्मपथ पर बढ़ने वालों को अत्यन्त महत्त्व दिया करते थे अत: स्वयं थावाच्चा के घर पधारते हैं। इतना ही नहीं वे अत्यन्त चतुराई के साथ थावच्चापुत्र के वैराग्य की परीक्षा करते हुए कहते हैं- हे देवानुप्रिय! मैं तुम्हारे आसपास से गुजरने वाली हवा को छोड़कर किसी भी समस्या से तुम्हारी रक्षा करूंगा अत: तुम अभी दीक्षित मत होओ। इसके जवाब में थावच्चापुत्र कहता है- हे देवानुप्रिय! यदि आप जरा (बुढ़ापा) और मृत्यु से मुझे बचा सकते हैं तो मैं आपका प्रस्ताव स्वीकार करूंगा। इस उत्तर को सुनकर कृष्ण अवाक् रह गए और प्रेरणा देते हुए कहने लगे कर्मक्षय होने पर ही जरा और मृत्यु से छुटकारा हो सकता है। यह सुनकर थावच्चापुत्र ने कहामैं कर्मक्षय करने के लिए ही दीक्षित होना चाहता हूँ। इस संकल्प को सुनकर प्रमुदित मन वाले कृष्ण वासुदेव ने थावच्चापुत्र के साथ दीक्षा लेने को तैयार एक हजार दीक्षार्थियों का दीक्षा-महोत्सव अत्यन्त उत्साह के साथ करवाया।३१ इस कथानक से कृष्ण वासुदेव की धार्मिक अभिरुचि का स्पष्टतया परिबोध प्राप्त किया जा सकता है। इसी प्रकार प्रस्तुत आगम के सोलहवें अध्याय में उनकी अद्वितीय शक्ति का मर्मस्पर्शी वर्णन किया गया है, जैसे- एगाए बाहाए रहं सतुरगं ससारहिं गेण्हइ, एगाए बाहाए गंगं महानई बासठ्ठि जोयणाई अद्धजोयणं च वित्थिण्णं उत्तरिउं पयत्ते यावि होत्था२२ अर्थात् लवण समुद्र के बाहर धातकी खण्ड में स्थित, द्रौपदी का अपहरण करने वाले अमरकंकाधिपति पद्मनाभ को पराजित करके हस्तिनापुर लौटते समय कृष्ण वासुदेव ने एक हाथ में घोड़ों और सारथि सहित रथ को लिया तथा दूसरे हाथ से साढ़े बासठ योजन (८०० कि० मी० लगभग) विस्तीर्ण गंगा महानदी को पार करने को उद्यत हुए और पार किया।” इस उदाहरण से समझा सकता है कि कृष्ण वासुदेव अपार बल के स्वामी थे। तभी तो वे रथ, घोड़े और सारथि को उठाकर लगभग ८०० कि० मी० विस्तृत गंगा महानदी को पार कर सके थे। इसीलिए उन्हें अतिबली, महाबली आदि कहा गया है। इसी आगम में यह भी उल्लिखित किया गया है कि पाण्डवों की जननी कुन्ती कृष्ण की बुआ (वासुदेव की बहन) थीं। अतएव पाण्डवों के साथ कृष्ण का पारिवारिक सम्बन्ध था और इसी कारण वे द्रौपदी की रक्षा हेतु अमरकंका गए थे। (४)अन्तकृद्दशांग सूत्र - अष्टम अंग ग्रन्थ अन्तकृद्दशांगसूत्र के आठ वर्गों में से प्रारम्भिक पाँच वर्गों में वासुदेव श्रीकृष्ण का भरपूर उल्लेख प्राप्त होता है। यहाँ उनकी

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114