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[ २२ ] माघ में रचा गया। सम्भव है कि उसीके आस पास सीताराम चउपई की उक्त ढाल भी वहां रची गई हो। इस सीताराम चउपई की संवत् १६८३ की लिखित तो प्रति ही मिलती है, अतः इसका रचनाकाल संवत् १६७३ से ८३ के वीच का निश्चित है।
प्रस्तुत चउपई नव खण्ड का महाकाव्य है। नवों रसों का पोपण इसमें किए जाने का उल्लेख कवि ने म्वय किया है। प्रसिद्ध लोक गीतों की देशियों (चाल) में इस ग्रंथ की ढालें बनाई गई, उनका निर्देश करते हुए कवि ने कौनसा लोक गीत कहाँ कहाँ प्रसिद्ध है, उल्लेख किया है। जैसे
(१) नोखा रा गीत-मारवाडि ढाडि, माहे प्रसिद्ध छ। (२) सूमरा रा गीत-जोधपुर, मेडता, नागौर, नगरे प्रसिद्ध छ। (३) तिल्ली रा गीत-मेडतादिक देशे प्रसिद्ध छ। “(४) इसी प्रकार "जेसलमेर के जादवा" आदि गीतो की चाल में भी ढालें बनाई गई।
प्रस्तुत ग्रन्थ पाठकों के समक्ष उपस्थित है अतः विशेष परिचय ग्रंथ को पढ़कर स्वयं प्राप्त करे।
१२-राम यशो रसायन-विजयगच्छ के मुनि केसराज ने संवत् १६८३ के आश्विन त्रयोदशी को अन्तरपुर मे इसकी रचना की। ग्रंथ चार खण्डों में विभक्त है। ढाले ६२ हैं। इसका स्थानकवासी और तेरहपंथी सम्प्रदाय में बहुत प्रचार रहा है। उन्होंने अपनी मान्यता के अनुसार इसके पाठ में रहो-बदल भी किया है। स्थानकवासी समाज की ओर से इसके दो तीन संस्करण छप चुके हैं। पर मूल पाठ आनंद काव्य महोदधि के द्वितीय भाग में ठीक से छपा है। इसका