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[ १४ ] व ऊंचा स्थान मिलना चाहिये। राम राज्य एक आदर्श राज्य माना माना जाता है उसका बखान हर व्यक्ति करता है। महात्मा गांधी ने भी अपने स्वराज्य का आदर्श, रामराज्य ही रखा था। उन्होंने राम नाम की महिमा को भी अद्भुत माना है। गांधीजी और विनोवा जैसे संत सब रोगों के निवारण का इसे अमोघ उपाय मानते है । साधारणतया जनरुचि भोग-विलास की ओर अधिक आकर्षित नजर आती है और उसमें कृष्ण की लीलाओं से बहुत स्फूर्ति और प्रेरणा मिलने से विगत कुछ शताब्दियों से कृष्ण-भक्ति का प्रचार अधिक बढ़ा है। पर इधर ३०० वर्षों में तुलसीदास की रामायण ने जनता को बहुत बड़ी नैतिक प्रेरणा दी है। राम-भक्ति के प्रचार में इस राम चरित का बहुत बड़ा हाथ है।
राम कथा का प्रचार भी बहुत ही व्यापक एवं विस्तृत रहा है। इस कथा के अनेक रूप विविध धर्म, सम्प्रदायों एवं देश-विदेशों में प्राप्त हैं। भारत के सभी भाषाओं के प्राथमिक काव्य प्रायः रामचरित्र को लेकर बनाए गए है। वाल्मीकि का रामायण संस्कृत का आदि काव्य माना जाता है। इसी प्रकार विमलसूरि का 'पउम चरिय' भी प्राकृत भाषा का आदि काव्य माना जा सकता है । जैन-ग्रंथों
नाम पर आज कितना अनाचार फैला हुआ है। इसे सभी जानते हैं । जिसको धनोपार्जन करना होता है और अपनी काम-पिपासा शात करनी होती है वह अपने को कृष्णावतार घोषित कर देता है। कृष्णजी को योगीराज कहा जाता है। वे वेदमत्रों के प्रचारक, राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ और ज्ञानी थे। पर, श्रीमद भागवत एकादश स्कध में उनका जीवन-चरित्र कुछ विकृत रूप में दिया गया है।"