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[ १२ ] के इस ग्रन्थ में कुल ६३ ढाले हैं ग्रन्थ का अन्त क्रमानुसार ६३वीं ढाल के साथ होता है।
कवि ने अनेक देवी शस्यिों का सहारा लेकर अतिप्राकृत तत्व का भी समावेश किया है। अनेक विद्याओं आदि के प्रयोग से कवि ने मन्त्रमुग्ध की भांति स्तंभित करना स्वेच्छानुसार वेश बना लेना जैसे विद्याधरों के मायावी कौतुकों का वर्णन किया है इस अतिप्राकृत तत्व ने घटनाओं मे कौतुहल की यथेष्ट वृद्धि की है।
वस्तुतः कवि की प्रतिभा ने जानी पहचानी जैन राम कथा को भी एक नये आकर्पक रूप में प्रस्तुत किया है। वहुमुखी प्रतिभा के धनी महान गीतकार समयसुन्दर ने अनेक विषयों पर लिखा है जिसमें लगभग दश हजार रास साहित्य ग्रन्थों में से हमारा यह आलोच्य ग्रन्थ अपने विराट रूप मार्मिक प्रसंग एवं सहज सरसता के कारण अपना महान अस्तित्व रखता है सरस सरल भाषा के सांचे में राम कथा को ढ़ाल गाकर सुनाने का कवि का यह प्रयास अनेक दृष्टिकोणों से स्तुत्य है।
[मरु भारती वर्ष ७ अंक १ से ]