Book Title: Sirikummaputtachariyam
Author(s): Ananthans, Jinendra Jain
Publisher: Jain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur
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प्राकृत कथा साहित्य की संक्षिप्त परम्परा एवं कुम्मापुत्तचरिअं
'कुम्मापुत्तचरिअं' का स्वरूप प्राचीन भारतीय कथा-साहित्य पर विचार किया जाए तो संस्कृत, पालि और प्राकृत में विपुल कथा-साहित्य है, तथा इस कथा-साहित्य की रचना गद्य और पद्य में की गई है।
कथावाङ्मय के कथा और आख्यायिका ऐसे दो भेद हैं। बाणभट्ट की 'कादम्बरी' के समान कथा सिर्फ कल्पना पर आधारित होती है, तो उसके 'हर्षचरित' के सदृश आख्यायिका की रचना कल्पना के स्वर उपयोग करके ऐतिहासिक या पौराणिक घटना पर की जाती है। कथा के ये दोनों प्रकार मनोरंजन के लिये किए गये हैं। इसके अनुसार कूर्मापुत्र का चरित्र आख्यायिका है।
प्राकृत के गद्य कथावाङ्मय में संघदासकृत 'वसुदेवहिँडि', हरिभद्रसूरिकृत ‘समराइच्चकहा', देवेन्द्रगणिकृत 'रयणचूडरायचरियं', सुमतिकृत 'जिणदत्ताक्खाणं', आदि का समावेश होता है। पद्य कथा वाङ्मय में पादलिप्तसूरिकृत 'तरंगवईकहा', विमसूरिकृत 'पउमचरियं', हरिभद्रसूरिकृत 'धूर्ताख्यान', धनेश्वरसूरिकृत 'सुरसुंदरिचरियं' आदि का समावेश होता है। वैसे ही गद्यपद्यात्मक चम्पूकथा वाङ्मय में उद्योतनसूरिकृत 'कुवलयमाला' का समावेश होता है। 'कुम्मापुत्तचरिअं' में गद्य के दो परिच्छेद तथा एक-दो वाक्य या तं च केरिसं, तथा हि, यदुक्तं, आदि वाक्यांश मिलते हैं, तो भी इसको चम्पू न कहकर पद्यमय कथा ही कहा गया है।
___ हरिभद्रसूरि ने अपनी ‘समराइच्चकहा' में कथा के निम्नलिखित तीन प्रकार कहे हैं
१. दिव्यकथा-देवों की कथाएँ। २. मानुषकथा-मानवों की कथाएँ। ३. दिव्यमानुषकथा-देवों और मानवों की कथाएँ।
कवि कोतूहल ने लीलावईकहा में भी इन्हीं तीन प्रकार की कथाओं का उल्लेख किया है। _ 'कुम्मापुत्तचरिअं' में द्रौणराजा, द्रुमारानी, दुर्लभकुमार तथा महेन्द्रसिंह राजा, कूर्मारानी, कूर्मापुत्र आदि मानव और महाशुक्रस्वर्ग में देव, इन्द्र, भद्रमुखी यक्षिणी, आदि देवी-देवताओं का उल्लेख हुआ है। इसलिए यह दिव्यमानुष कथा है।
फिर भी हरिभद्रसूरि ने विषयगत कथाओं के चार प्रकार कहे हैं१. अर्थकथा-द्रव्यार्जन सम्बन्ध की कथाएँ। २. कामकथा-वैषयिक सुखोपभोग सम्बन्ध की प्रणयकथाएँ।
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