Book Title: Sirikummaputtachariyam
Author(s): Ananthans, Jinendra Jain
Publisher: Jain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur
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तत्थ य दोणनरिंदो पयावलच्छीइ निज्जिअदिनिंदो | णिच्चं अरियणवज्जं पालइ निक्कंटयं रज्जं ।। 10।। अर्थ : और वहाँ पर (अपने ) प्रताप की कान्ति से सूर्य को जीतता हुआ द्रौण राजा शत्रुओं से रहित निश्कंटक राज्य का हमेशा पालन
करता था ।
तस्स नरिन्दस्स दुमा नामेणं पट्टराणिआ अत्थि । संकरदेवस्स उमा रमा जहा वासुदेवस्स ।। 11।। अर्थ : शंकर देव की उमा / पार्वती (और) वासुदेव (विष्णु) की रमा (लक्ष्मी) के समान उस राजा की द्रुमा नामकी पटरानी थी ।
दुल्लभणामकुमारो सुकुमारो रम्मरूवजियमारो । तेसिं सुओत्थि गुणमणिभंडारो बहुजणाधारो ।। 12 ।। अर्थ : अत्यंत सुकुमार, रूप में सुन्दर कामदेव को जीतने वाला, गुण रूपी मणियों का भण्डार (और) बहुत से लोगों का आधार दुर्लभ नामका राजकुमार उनका पुत्र था ।
सो कुमरो नियजुव्वणराजमएणं परे बहुकुमारे । कंदुकमिव गयणतले उच्छालितो सया रमई | 13 || अर्थ : अपने यौवन के (तथा) राजमद के वशीभूत हो वह राजकुमार बहुत से कुमारों (बच्चों) को गेंद की तरह आकाश की ओर उछालता हुआ सदा खेलता था ।
अण्णदिणे तस्स पुरस्सुज्जाणे दुग्गलाभिहाणम्मि । सुगुरुसुलोयणणामा समोसढो केवली एगो ।। 14।। अर्थ : अन्य किसी दिन दुर्गिल नाम के उस नगर के उद्यान में विद्वान् सुलोचन नाम के एक केवली (मुनि) आये ।
तत्थुज्जाणे जक्खिणी भद्दमुही नाम निवसए निच्चं । बहुसालक्खवडद्दुमअहिठिअभवणम्मि कयवासा || 15 ||
अर्थ : उसी उद्यान में हमेशा निवास करने वाली भद्रमुखी नाम की यक्षिणी बहुशाल नामक वटवृक्ष के नीचे वाले भवन में अपना आवास किए हुए थी ।
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सिरिकुम्मापुत्तचरिअं
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