Book Title: Sirikummaputtachariyam
Author(s): Ananthans, Jinendra Jain
Publisher: Jain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur

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Page 41
________________ अर्थ : कुमरणसण सुणे इअ देसणं सुणेउं सम्मत्तं जक्खिणीइ पडिवन्नं। कुमरेण य चारित्तं गरुयं गुरुअंतिए गहि।। 92 ।। अर्थ : इस प्रकार उपदेश को सुनकर यक्षिणी ने सम्यक्त्व ग्रहण कर लिया और कुमार के द्वारा गुरु के पास अत्यधिक कठिन चारित्रा धर्म (मुनि धर्म) को ग्रहण किया गया। थेराणं पयमूले चउदसपुव्वीमहिज्जइ कुमारो। दुक्करतवचरणपरो विहरइ अम्मापिऊहि समं ।। 93 || अर्थ : मुनियों (आचार्यों) के चरणों में रहकर चौदह पूर्व ग्रन्थों का अध्ययन करता हुआ वह दुर्लभकुमार दुष्कर (कठिन) तपश्चरण में तल्लीन (निपुण) माता-पिता के साथ विहार/विचरण करता है। कुमरो अम्मापियरो तिण्णि वि ते पालिऊण चारित्तं। महसुक्के सुरलोए उववन्ना मंदिरविमाणे।। 94 ।। अर्थ : दुर्लभकुमार, (उसके) माता तथा पिता, वे तीनों ही चारित्र धर्म को पालकर महाशुक्र नाम के देवलोक के मन्दिर विमान में उत्पन्न हुए। सा जक्खिणी वि चइउं वेसालिए अ भमरभूवइणो। भज्जा जाया कमला नामेणं सच्चसीलधरा।। 95।। अर्थ : वह यक्षिणी भी च्युत होकर (आयु के पूर्ण होने पर) वैशाली नगरी में भ्रमरराजा की सत्य और शील की धारक कमला नाम की पत्नी हुई। भमरनरिंदो कमलादेवी य दुवे वि गहियजिणधम्मा। अंतसुहज्झवसाया तत्थेव य सुरवरा जाया।। 96 || अर्थ : भ्रमरराजा और कमलादेवी दोनों ही जिन धर्म को ग्रहण करके अं समय में शुभ ध्यान के कारण (महाशुक्र नामक स्वर्ग में) श्रेष्ठ टे। हुए। 20 सिरिकुम्मापुत्तचरि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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