Book Title: Sirikummaputtachariyam
Author(s): Ananthans, Jinendra Jain
Publisher: Jain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur

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Page 78
________________ (90) पमायभरपरवसो= प्रमाद से भरे हुए (और उसके)अधीन, बहुविहं= अनेक प्रकार के, सएहि= सैंकड़ों, भवभमणं भवों में भ्रमण करता हुआ, जीवो जीव, कहकहवि= किसी तरह से (बड़ी कठिनाई पूर्वक), लद्ध= प्राप्त किए गए. मणुयत्तं- मनुष्यभव को, खणमित्तेणक्षण मात्र में, तह- उसी प्रकार (चिन्तामणि रत्न के समान), हारइ= नष्ट कर देता है। (91) जे= जो, जिणधम्म= जिन धर्म को, निअहियए = अपने हृदय में, धरंति= धारण करते हैं, ते= वे, कयपुण्णा= पुण्यशाली (व्यक्ति), धन्ना= धन्य हैं, तेसिं= उनका, चिअ = ही, मणुयत्तं= मनुष्यपना, लोए = इस संसार में, सहलं सफल (तथा), सलहिज्जए = प्रशंसा करने योग्य है। (92) इअ = इस प्रकार, देसणं= उपदेश को, सुणेउं= सुनकर, जक्खिणीइ= यक्षिणी ने, सम्मत्तं= सम्यक्त्व, पडिवन्नं स्वीकार कर लिया, च= और, कुमरेण= कुमार के द्वारा, गुरुअंतिए = गुरु के पास में, गरुयं= कठिन, चारित्तं= मुनिचारित्र को, गहिअं= ग्रहण किया गया। (93) थेराणं मुनियों (आचार्यों) के, पयमूले= चरणों में रहकर, चउदसपुची चौदह पूर्व अंग ग्रन्थों का, अहिज्जइ= अभ्यास करता हुआ, कुमारो= वह दुर्लभकुमार, दुक्करो- दुष्कर (कठिन), तवचरणपरो= तपाचरण में तल्लीन (निपुण), अम्मापिऊहि समं माता-पिता के साथ, विहरइ= विहार/विचरण करता है। (94) कुमरो= कुमार, अम्मापियरो= माता व पिता, ते= वे, तिण्णि वि= तीनों ही, महसुक्के= महाशुक्र नाम के, चारित्तं= चारित्र धर्म को, पालिऊणपालकर, मंदिरविमाणे= मंदिर विमान में, उववन्ना उत्पन्न हुए। (95) सा= वह, जक्खिणी= यक्षिणी, वि= भी, चइउं= च्युत होकर (आयु के पूर्ण होने पर), वेसालिए = वैशाली नगरी में, भमरभूवइणो= भ्रमर राजा की, सच्चसीलधरा= सत्य और शील की धारक, कमला= कमला, नामेणं= नाम की, भज्जा= पत्नी, जाया= हुई। सिरिकुम्मापुत्तचरि 57 38 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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