Book Title: Sirikummaputtachariyam
Author(s): Ananthans, Jinendra Jain
Publisher: Jain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur

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Page 77
________________ (84) तो= तब, तस्स= उसको, रयणवणिअस्स= रत्न के व्यापारी/वणिक को धन, दत्तं= दिया, संतुट्ठो= संतुष्ट होता हुआ, सो= वह, निअगिहगमणत्थं अपने घर को जाने के लिए, वाहणे= जहाज पर, चडिओ= चढ़ गया। (85) पोअपएसनिविट्ठो= जहाज के प्रदेश पर (ऊपर वाले भाग पर) बैठा हुआ, वणिओ= वह व्यापारी, जा= जब, जलहिमज्झमायाओ= समुद्र के मध्य भाग में आया, ताव= तब, पुव्वदिसाए = पूर्व दिशा में, पुण्णिमाचंदो= पूर्णिमा का चाँद, समुग्गओ= उदित हो गया। (86) तं= उस, चंद= चन्द्रमा को, दठूण= देखकर, सो= वह, वाणियओव्यापारी, निअचित्ते- अपने चित्त (मन) में, चिंतए = विचार करता है (कि), चिंतामणिस्स= चिंतामणि रत्न का, तेयं= तेज (प्रकाश), अहियं= अधिक (है), अहवा= अथवा, मयंकस्स= चंद्रमा का। (87) इअ = इस प्रकार, चिंतिऊण= विचार करके, चिंतारयणं चिंतामणिरत्न को, निअकरतले= अपनी हथेली पर, गहेऊणं= लेकर के, नियदिट्टीइ= अपनी दृष्टि से, पुणो पुणो= बार-बार, रयणं- रत्न, य% और, इंदुचन्द्रमा को, निरिक्खइ- देखता है। (88) इअ = इस तरह, तस्स- उसको (रत्न तथा चन्द्रमा को). अवलोअंतस्सदेखते हुए, अभग्गेण= दुर्भाग्य से (उस व्यापारी की), करतलपएसा हथेली से, अइसुकुमालमुरालं= अत्यंत सुकुमार एवं मूल्यवान, रयणं= वह रत्न, रयणायरे= समुद्र में, पडियं= गिर गया। (89) जलनिहिमज्झे= समुद्र के बीच में, पडिओ= गिरे हुए, सयलरयणाणं= समस्त रत्नों में, सिरोमणी= शिरोमणि (उत्कृष्ट), तेण= उसको, मणीचिंतामणि रत्न को, बहु बहु= बार-बार, सोहंतएण- खोजने पर, वि= भी किं= क्या, कह वि= कोई भी (किसी तरह), लभइ= प्राप्त कर सकता है। 56 - सिरिकुम्मापुत्तचरिअं। 888888883 588883538688888 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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